Romantic hindi shayari 2022 | रोमांटिक लव शायरी
उर्दू अदब और Hindi Shayari (हिंदी शायरी) का इतिहास बहुत पुराना, शानदार व लाजवाब है। ऐसा माना जाता है कि उर्दू शायरी की शुरूआत सन 1580 से 1611 के बीच में हुई थी। कुछ प्रमाणों से यह पता चलता है कि गोलकुण्डा के चर्चित शासक मुहम्मद कुली कुतुबशाही ‘मुआनी, उर्दू के पहले शायर थे।
इसके अलावा उर्दू शायरी को परवान चढ़ाने में हज़रते मीर तक़ी ‘मीर’, सौदा’, ‘अनीस’, ‘दबीर’, जौक’, ‘गालिब’, ‘मोमिन’, ‘दाग़’, ‘जफर’, ‘अमीर’,’ और वली दकनी जैसे उस्ताद शायरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । उस्ताद मिर्जा गालिब’ का वक्ती शायरी शबान पूरी तरह निरवर सामने आये।
जिसके नख्शे कदम पर चलकर ‘जिगर’, ‘मज़ाज’, ‘दिल’, ‘हसरत मोहानी’, ‘फैज़’, ‘जोश’, फ़िराक’, और अल्लामा इक़बान जैसे शायरों ने शायरी को नया अन्दाज़, नया रूप और नया पन प्रदान किया। धीरे-धीरे शायरों के मुकाम में नये शायरों का आगमन शुरू हुआ।
‘साहिर लुधियानवी’, ‘हसरत जयपुरी’, ‘अमीर मीनाई’, मजरूह सुल्तानपुरी’, ‘राज़ भोपाली’, और ‘अली सरदार जाफरी’ आदि प्रख्यात शायरों के कलाम शायरी के इतिहास में जुड़ते चले गये । आज उर्दू शायरी अपने उच्च स्तर पर पहुंची हुई है।
उर्दू भाषा अपनी सादगी, रवानी, जोशेबयानी, शब्दों का चुटीलापन, मिठास और लोच के कारण भारत के कोने-कोने में समझी, बोली ओर सराहाइ जाती है, लेकिन बहुत से लोग उर्दू न पढ़ सकने के कारण उर्दू शायरी का पूरा लुत्फ़ नहीं उठा पाते।
ऐसे ही लोगों की रूचि को ध्यान में रखते हुए यह आर्टिकल तैयार की गया है, जिसमें उर्दू के बेहतरीन शे’र हिंदी शब्दों में संकलित किये गये हैं। यह एक ऐसा गुलदस्ता है, जिसमें जहां हर रंग-ओ-बू के फूल हैं, वहां तेज़-तर्रार काटे भी हैं, जो कभी शायरी शौकिनों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं, तो कभी निश्तर की तरह उसके दिल में चुभ भी जाते हैं।
उर्दू शायरी के साढ़े चार सौ बरसों के इतिहास को यदि किसी एक आर्टिकल में पोस्ट किया जा सके ऐसा सम्भव नहीं है। 1000 चुनिंदा Hindi Shayari (हिंदी शायरी) जो पहले गूगल पर नहीं है वह इस आर्टिकल में शामिल किए गए हैं जिसने आप पढ़ सकते हैं समझ सकते हैं अपने दोस्तों साथ, अपने परिवार वालों के साथ, अपने जान पहचान वालों के साथ फेसबुक इंस्टाग्राम पिंटरेस्ट व्हाट्सएप आदि परआप शेयर कर सकते हैं।
Latest shayari in hindi
सुहानी ये नर्म-नर्म हवा, झिलमिला रहे हैं चिरांग,
तेरे ख्याल की खुश्बू से बस रहे हैं दिमाग। फिराकSuhani yah naram-naram hawa jhilmila rahe hain Chirag,
Tere khayal ki Khushboo se bus rahe hain dimag mein. Firakदिल से आपकी मुहब्बत कम न होगी,
हम आप पर मर मिटेंगे आपको खबर भी न होगी। तुलसी शर्माDil se aapki Mohabbat kam na hogi,
Ham aap per mar mitenge aapko khabar Bhi Na hogi. Tulsi Sharmaसुनी थी शब को मैंने भी सदा गैरों के हँसने की,
तुम्हारी बज्म में कोई तो मेरा नाम लेता था। अज्ञातSuni thi sab Ko Maine Bhi sada gairon ke hansne ki,
Tumhari Bazm mein koi to Mera Naam leta tha. Agyat
बीते हुए जमाने यूं याद आ रहे हैं,
मुंह फेरकर वो जैसे कुछ मुस्कुरा रहे हैं। फिराकBite hue jamane Yun yad a rahe hain,
Munh Fer Karu Jaise kuchh muskura rahe Hain. firakहकीकत’ खुल गई ‘हसरत’ तेरे तर्के-मुहब्बत’ की,
मुझे तो अब वो पहले से भी बढ़कर याद आते हैं। हसरत मोहानीHakikat khul gai Hazrat tere Tarke-E-Mohabbat ki,
Mujhe to ab vah pahle se Bhi badhkar yad aate Hain. Hasrat mohaniदश्त ही दश्त हर-सू है फैला हुआ,
गांव हैं वीरान शहर उजड़ा हुआ।Dashat hi dashat har-shu hai faila hua,
Gaon hai veeran Shahar mujra hua.वो राह सुझाते हैं हमें हज़रते रहबर,
जिस राह पे उनको कभी चलते नहीं देखा। आज़ाद
उसकी गली में चाहने वाला नहीं मिला,
उसकी गली में चाहने वालों के सिर मिले। मेहर जयपुरीख़्वाब की दुनिया सलामत यह हक़ीक़त थी मगर,
शाम होने पर भी ‘रोशन’ मायले-परवाज़ था।हर नफ़्स’ इक मय्यत एहसास है,
हर तमन्ना रो रही है। इन दिनों। सहर सीतापुरीदिल टूटने से थोड़ी सी तस्कीन तो हुई,
लेकिन तमाम उम्र को आराम आ गया। सूफ़ी लखनवीआप ने लिखा जो मेरी हथेली पे अपना नाम,
चन्द लम्हों में ही मेरी तकदीर बदल गई।हमारी ज़िन्दगी भी कोई ज़िन्दगी है ये,
जीने के लिए हमको रोज़ मरना पड़ता है।ग़म अब तो सागर के जीने की अदा हो गए,
जख्मों को जो दिया नासूर खुद ही दवा हो गए।इतनी रफ्तार से गुज़रा वक्त मेरी ज़िन्दगी का,
कि कब बीता बचपन, जवानी, मालूम न हुआ।फिरते हैं ‘मीर’ ख्वार, कोई पूछता नहीं,
इस आशिकी में इज़्ज़ते-सादात भी गयी। मीर तकी मीरफिर आ गया करार दिले बेकरार को,
फिर एक बार देख लो मुझको इसी तरह। बेखुदहँसी गुलों को देखकर जो आप याद आ गए,
तो जख्म रोए किस कदर, हमारे दिल से पूछिए। आदिल मंसूरीतेरी जुल्फें सियाह की याद में आंसू झलकते हैं,
अंधेरी रात है, बरसात है, जुगनू चमकते हैं। मीरलिल्लाह अपने हुस्न के जलवे बखेर दो,
मेरी नजर से दूर सितारे चले गये। साजन पेशावरीहुस्न का दरिया फ़िजा में, हर तरफ लहराये है,
देखना ऐ दिल नजर की नाव डूबी जाये है। परवेजअभी कमसिन है, जिद भी हैं, निराली उनकी,
इस पै मचलते हैं कि हम दर्दे-जिगर देखेगे। जिगर गुरादाबादीअहले- दुनिया की निगाहें देख कब पाईं मुझे,
मैं भी जैसे उनके ही अन्जाम का आग़ाज था।हुस्न गुजरे निगाहों से कितने मेरी,
कौन दिल में बसा है तुम्हारी तरह। साजन पेशावरीअल्लाह रे उनके हुस्न की मोजिज नुमाइयाएँ,
हर रंग में वही थे, जहां तक नजर गई। कमरसियाही आंख से लेकर ये नामां तुमको लिखता हूं,
के तुम नामां को देखो और तुम्हें देखें मेरी आंखें।तुमको हज़ार शर्म कहूं, मुझको लाख़ जब्त,
उल्फ़त वो राज़ है जो छिपाया न जायेगा। हालीतुझे ऐ बज़्मे-हस्ती कौन काफ़िर याद रखेगा,
मुसाफ़िर राह की बातों को अक्सर भूल जाते हैं। अब्दुल हमीद ‘अदम’अब वो मिलते भी हैं तो यूँ के कभी,
हमसे कुछ वास्ता न था गोया।जिस ख़त पे यह लगाई उसी का मिला जवाब,
इक मोहर मेरे पास है दुश्मन के नाम की। दाग़ देहलवीमेरी तबाहियों में नहीं है तुम्हारा हाथ,
मुझको तो एतबार है कसमें न खाइये। अमीर कजलबाश
Top hindi shayari
अब शऊरे-मयगुलफाम बदलना होगा,
जिसमें गर्दिश न हो वो जाम बदलना होगा। अख़्तर बनारसी
मैं भी चैन से बैठूं तुम भी कुछ काम करो,
इस कमबख्त मुहब्बत का काम तमाम करो। पुष्पेन्द्र कुमार
कहां की ऐसी उजलत है तकाज़ों पर तक़ाजा है,
ज़रा मैं दिल को समझा लूं उठा जाता हूं महफिल से।
मिट गया रास्ते से निशां प्यार का,
नक़्श जो था हवस का वो गहरा हुआ।
चला जाता हूं हँसता-खेलता मौजे-हवादिस से,
अगर आसानियां हों ज़िन्दगी दुश्वार हो जाए।
तू बॅकद्र-जर्फ़ सी, मय-ए-मारिफत पिलाना,
तेरा रिन्द फिर बदकर, कहीं दार तक न पहुंचे।
ठुकराने में पिन्हां तू बता क्या राज़ था,
मैं तो तेरी ज़िन्दगी का इक नया अन्दाज़ था।
अब कौन बात रह गयी, ये बात भी गई,
यानी कभी-कभी की मुलाकात भी गई।
मुहब्बत का तुमसे ‘असर’ क्या कहूं,
नज़र मिल गई, दिल धड़कने लगा।
खिलना कम-कम कली ने सीखा है,
उसकी आंखों की नीम बाजी से। मीर तकी मीर
यह किससे सीखा है तेरी आंखों ने,
इस बल्ला की निगाह करना। अकबर इलाहाबादी
तेरी आंखों का कुछ कसूर नहीं,
हां मुझे को खराब होना था। जिगर मुरादाबादी
दीदए-दोस्त तेरी चश्म नुमाई की कसम,
मैं तो समझा था कि दर खुल गया मैखाने का। जिगर मुरादाबादी
उनको गलरे हुस्न है मुझको सरूरे इश्क,
वो भी नशे में चूर हैं मैं भी पीये हुए।
कुछ हमको बांट दीजिए अपनी वफा के फूल,
हम भी खड़े हैं अकेले वफा की कतार में।
अपनी खुशफ़हमी से कितना मुतमइन था मैं मगर,
जो अयां था एक दुनिया पर मैं ऐसा राज़ था।
खरीदते हैं वो जब भी कोई नई तुलवार,
चलाते हैं पहले मुझी पर इम्तहा के लिए।
दूर था तुझसे मगर तेरी मुहब्बत की कसम,
मैं जहां भी था वहीं पर गोश बर आवाज़ था।
रात है, बरसात है, मस्जिद में रौशन हैं चराग,
पड़ रही है रोशनी भीगी हुई दीवार पर।
जैसे इक बेबा के आंसू दुबते सूरज के वक्त,
थम गये हों बहते बहते चम्पई रुखसार पर । एहसाब दानिश
सिला भी करता है, उसका सिला भी देता है,
कि मेरे हाल पे वह मुस्कुरा भी देता है। मुश्फिक ख्वाजा
अमीरे-शहर फकीरों को लूट लेता है,
कभी नहोला-ए-मजहब कभी बनामे वेफा ! -अहमद फराज
बात करें तो रख देते हैं लोग जुबां पर अंगारे,
झूठ है मेरा केहना तो फिर सच खुद बोल के देख लें आए। कतील शिफाई
नग्नमा – ओ-लै इक तरफ़ कोई सदा तक भी न थी,
हादिसों के फ़ैज़ से दिल इक शिकस्ता साज़ था।
न बोल इस बल्म में ऐ दोस्त क्यों दीवाना बनता है,
यहां तो एक जरा-सी बात का अफसान बनता है। क़तील शिफाई
अपने ऐबों को छुपाने के लिये दुनियां में,
मैंने हर शख्म पे इल्जाम लगोजा चढ़ा। करीर तूरी
हमें सलीका न आया जहां में जीने का,
कभी किया न कोई काम भी करोने का। फारिग बुखारी
न छेड़ ऐ हमनशी, कैफ़ियते सहबा के अफ़साने,
शराबे-बेखुदी के मुझको साग़र याद आते हैं। ‘हसरत’ मौहानी
जितनी भी मैदे में है, साक़ी पिला दे आज,
हम तश्नाकाम, ज़ोहाद के सहरा से आए हैं। खुमार बाराबंकवी
कहते हैं उम्रे रफ़्ता कभी लौटती नहीं,
जा मैकदे से मेरी जवानी उठा के ला। आदम
मयक़दे में कभी तौबा की तो जाते देखा,
एक दीवार खड़ी हो गयी पैमानों की। नूह नारवी
यूं तो पीता नहीं पी लेता हूं गाहे-गाहे,
वो भी थोड़ी-सी मज़ा मुंह का बदलने के लिए। जलाल
मयकशी का है यही बज़्मे मुहब्बत में मज़ा,
दिल-ए-आशिक़ हो कबाब और लबे – यार शराब। बहादुरशाह ‘ज़फ़र’
ग़म न कर शम्अ रात गुज़रेगी,
जलते-बुझते हयात गुज़रेगी। निहाल सेवहारवी
Urdu hindi shayari
जो गुज़रते हैं ‘दाग’ पर सदमे,
आम बन्दानवाज क्या जाने। दाग
अहले- महफिल की नदामत से झुकेंगी नज़रें,
सरफिरे बज़्म में जब भी जवाब मांगेंगे। जिगर श्योपुरी
इसी पे नाज़, घड़ी-दो घड़ी जली होगी,
इसी पे शम्अ, हमारी बराबरी होगी। मुबारक अजीमाबादी
देखकर तुमको, याद आ गया नागहां,
वो फ़साना जो अब तक था भूला हुआ।
जहां के लोग सच के कत्ल पर ईमान रखते हैं,
मुझे देखो, मैं उस शहरे-सितमपरवर में रहता हूं। शौकत हाशमी
सफ़ीना डूब रहा है, ज़रा पुकार तो ले,
कहां है वो जिन्हें दावा है नाखुदाई का। सैयद फ़रहत
वो हाल-ए-ज़ार है मेरी कि गाह ग़ैर से भी,
तुम्हारे सामने यह माजरा बयां न हुआ। मोमिन
हमने माना कि तगाफ़ुल न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक। मिर्जा ‘गालिब’
बूए-गूल, रंगे- शफ़क, नूरे सहर,
सब तेरे ग़म के बहाने निकले। शोहरत बुखारी
दिल की वीरानी का क्या मजकूर हैं,
यह नगर सौ मरतबा लूटा गया। ‘मीर’
ग़ैर के घर में तू जो घुसा है अपना दिल बहलाने को,
तेरे घर कोई और घुसा हो, ऐसा भी हो सकता है। जीरो बांदवी
भीड़ थी तो समाअत भी माजूर थी,
शोर था हर तरफ जब मैं तन्हा हुआ।
पैर कहते है, ‘कैसे लौटेगा,
प्यार कहता है, ‘और आगे चल’। सईद अहमद ‘अख़्तर’
हुरन इश्क ख्वाजे-नाज़ हैं,
जिसके चौंक पड़ने को इश्क कहते हैं। फ़िराक़ गोरखपुरी
लोग कहते हैं आशिकी जिसको,
मैं जो देखा बड़ी मुसीबत है। मीर दर्द
तुमने यह फूल जो जुल्फ़ों में सजा रखा है,
इक दिया’ है जो अंधेरे में जला रखा है। क़तील शिफ़ाई
इस मर्ज से कोई बचा भी है,
चारागर’ इश्क की दवा भी है। दिल शाहजहांपुरी
रोशनी जब उफ़क पर भी रुक न सकी,
फिर अन्धेरा घना और गहरा हुआ।
मौत का भी इलाज हो शायद,
ज़िन्दगी का कोई इलाज नहीं। फ़िराक़ गोरखपुरी
बिजलियों ने सीख़ ली तबस्सुम की अदा,
रंग जुल्फों का चुरा लायी घटा बरसात की। सबा अफ़गानी
दिल को बरबाद करके बैठा हूं,
कुछ खुशी भी है, कुछ मलाल भी है। ‘जिगर’ मुरादाबादी
पहले मैं कांटों को आखों से लगा लेता था,
अब कोई फूल भी लाता है, तो डर लगता है। डा. राहत इन्दौरी
आशना हो के है बेगाना ‘हफ़ीज़’,
तेरी महफ़िल में, तेरी महफ़िल से। हफ़िज़ होशियारपुरी
दिल, अजब शहर था ख़यालो का,
लूटा मारा है हुस्न वालों का। ‘मीर’
मेरे सपनों की तामीरें इक दिन मैं ही कर लूंगा,
तू मुझको क्या दे जायेगा, तू क्या कोई विधाता है। जिगर श्योपुरी
वस्ल का दिन और इतना मुख़्तसर,
दिन गिना करते थे इस दिन के लिए। अमीर मीनाई
आपको मैंने निगाहों में बसा रखा है,
आईना छोड़िए आईने में क्या रखा है। हिना तैमूरी
तेरी सन्नाई के सदक़ तेरी अज़्मत की कसम,
हर नफ़्स इस दहर में इक पैकरे- एजाज़ था।
हमने माना कि तगाफुल’ न करोगे लेकिन,
ख़ाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक। मिर्ज़ा ‘गालिब’
मुझको मुझसे मिला दो अगर हो सके,
खुद से अब तक हूं ‘रोशन’ मैं बिछड़ा हुआ।
कमज़ोर जान के भी तुझे ऐ ग़मे फ़िराक,
दिल ने लिया है तेरा सहारा कभी-कभी। प्रो. जगन्नाब आज़ाद
वस्ल का दिन ओर इतना मुख़्तसर,
दिन गिना करते थे इस दिन के लिए। अमीर मीनाई
कहाँ हम, कहाँ वस्ले-जाना की हसरत,
बहुत है उन्हें इक नज़र देखा लेना। हसरत मोहानी
तेरे जाने के बाद खुशियों ने भी छोड़ा साथ मेरा,
चलो अच्छा हुआ वर्ना इनका भी जनाज़ा उठता।
दिन ढल गया, शाम आई, बहुत हँसा दिया, अब जाओ यारो,
साथ तन्हाई के अब ‘सागर’ का अश्क बहाने का वक्त है।
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ऐ ज़िन्दगी तुझसे बढ़कर और होगा भला हरजाई कहाँ,
कोई ना चाहे तुझको छोड़ना, तू ही सबको छोड़े यहाँ।
बेवजह हर कहीं न जाने कब छलक आते हैं ये,
अब तो यारो अश्क भी बेगाने हो गए।
इस दिल के सिवा और मेरे पास कुछ नहीं,
गर इसको तोड़ दोगे तो बाकी रहेगा क्या। जिगर श्योपुरी
खुद को पढ़ता हूं छोड़ देता हूं,
एक वरक़ रोज मोड़ देता हूं। ताहिर फ़राज
वो शोखिए-मोहतात के बचते हुए अन्दाज़,
दुनिया भी न रहने दे, क़यामत भी न ढाये। फ़िराक़ गोरखपुरी
बेकली को मिटे इक ज़माना हुआ,
अब समुन्दर का पानी है ठहरा हुआ।।
सौ-सौ उमीदें बधती हैं इक-इक निगाह पर,
मुझको न ऐसे प्यार से देखा करे कोई। इकबाल
मस्जिद में उसने हमको आंखें दिखाके मारा,
काफिर की देखो शोखी, घर में खुदा के मारा। जौक
पो रहा हूं आंखों-आंखों में शराब,
अब न शीशा है न कोई जाम है। अज्ञात
कौन है जिसने मय नहीं चक्खी ? कौन झूठी कसम उठाता है?
मयकदे से जो बच निकलता है, तेरी आंखों में डुब जाता है। अदम
बंद ही रहती हैं तेरे देखने वालों की आंख,
और क्या देखेगा कोई तेरी सूरत देखकर? ‘वहशत’ कलकतवी
आइने से आंखों का लडाना नहीं अच्छा,
डरता हूं में लग जाये नज़र, तेरी नजर को। ‘बिस्मिल’ इलाहाबादी
देखीं थी एक रोज तेरी मस्त अंखड़ियां,
अंगड़ाइयां पी लेते है अब तक खुमार में। ‘मीर’
कुछ तुम्हारी निगाह काफिर थी,
कुछ मुझे भी खराब होता था। मजाज
खुदा जाने मेरा क्या बजता है उनकी निगाहों में,
सुना है आदमी को वो नजर में तोल लेते हैं। अकबर इलाहाबादी
ढल चुकी रात, बुझ गयीं शम्एं,
राह तकती है चश्मे-तर खामोश। हिमायत अली ‘शाइर’
ख़राब क्योंकि न हो शहर – ए – दिल की आबादी,
हमेशा लूटने वाले ही इस दयार में आये। ‘जुरअत’
सौ जान से हो जाऊंगा राज़ी मैं सज़ा पर,
पहले वो मुझे अपना गुनहगार तो कर लें। अकबर इलाहबादी
जब कभी जुल्फ़े- परीशां तेरी लहरायी है,
ऐसा लगता है कि सावन की घटा छायी है। शकील यवतमाली
वक़्त गो हमसफ़र न था मेरा,
वक़्त का हमसफ़र रहा हूं मैं। अनवर ‘शऊर’
मुझको रह-रह के परिन्दों का ख़याल आता है,
शाख से टूट के जो उड़ता है पत्ता कोई। ज़मान कुंजाही
कहां हम, कहां वस्ले-जानो’ की हसरत,
बहुत है उन्हें इक नज़र देख लेना। हसरत मोहानी
कैसे गुमनाम से तेवर में हवा आयी है,
जैसे बस्ती में नये घर को जला आयी है। सत्यपाल सकोना
सहारा क्यों लिया था नाखुदा का,
खुदा भी क्यों करे इमदाद मेरी। हफ़ीज़ जालन्धरी
निक़हते-जुल्फे-परीशां दास्ताने-शामे-ग़म,
सुबह होने तक इसी अन्दाज़ की बातें करो। फ़िराक़ गोरखपुरी
हादसा जैसे नुमाइश’ हो, गम तमाशा हो,
वो इस अन्दाज से आते हैं राहतें लेकर। सत्यप्रकाश शर्मा
सफ़ीने का नहीं, मुझको ये ग़म है,
जो शह दे नाखुदा को वो खुदा क्या। नक्श सहराई
‘अमीर’ उस रास्ते से जो गुज़रते हैं, वो लुटते है,
मुहल्ला है हसीनों का कि कज्जाकों की बस्ती है। अमीर मीनाई
इस शहर के मस्कन हैं कि उधड़ी हुई कब्रें,
हर शख़्स कफन पहने हुए घूम रहा है। सबा फ़ाजिली
भंवर से लड़ो तुन्द लहरों से उलझो,
कहां तक चलोगे किनारे-किनारे। रज़ा हमदानी
महशर में बात भी न जुबां से निकल सकी,
क्या झुक के उस निगाह ने समझा दिया मुझे। जिगर मुरादाबादी
तेज़ बारिश ने छत पे दस्तक दी,
जब मेरे घर में भर गया पानी। अहमद नदीम कासमी
नोंचा गया परों को बस इतने कुसूर पर,
क्यूं हमने की क़फ़स में गुलिस्ता की गफ़फ़्तगू। इख़लाक़ सहसवानी
मेरे चारों तरफ़ मसअलों का,
एक जंगल-सा फैला हुआ है। क़तील शिफ़ाई
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बे तमन्नाई के बरहम रंग-ए-महफ़िल कर दिया,
दिल की बज़्म-आराइयां थी, आरजू-ए-दिल के साथ। अमरनाथ ‘साहिर’
खुदा का ख़ौफ या ज़ाहिद को, या जरदार को होगा,
शराबी इससे मुस्तग़नी हैं, वो बेबाक होते हैं। ‘बिस्मिल’ देहलवी
काबा-ओ-दैर में तो लोग हैं, हैं, आते-जाते,
वो न लौटे, जो दरे-पीरे-मुगां तक पहुंचे। मुहम्मददीन ‘तासीर’
‘नासिख़’ की फाकामस्ती से अल्लाह की पनाह,
खाता है सूखे टुकड़े भिगोकर शराब में। नासिख़
पहुंच सके तो पहुंच जा तू माहो- अंजुम तक,
शराबे-नूर लबरेज़’ हैं से ये पैमाने। हीरालाल ‘फलक
ज़ेरे-महराब दो अब्रू हैं वो आंखें मदमस्त,
आये मस्जिद में हैं क्यों पी के ये मैख़ख़्वार शराब । बहादुरशाह ‘ज़फ़र’
हम जानते हैं लुत्फे तक़ाज़ा-ए-मयफ़रोश,
वो नक्द में कहाँ जो मज़ा है उधार में। रियाज खैराबादी
वो खुद बदल गये कि ज़माना बदल गया,
देखा है उनको आज तो पीरे-मुग़ां के साथ। ‘वफ़ा’ मेरठी
साक़िया, एन मुहब्बत में पसोपेश है क्या,
जाम दे जाम, कि अब जाम दिया करते हैं। ‘ज़की’ काकोरवी
नश्शाए-ऐश मुझे गरदिशे-अयाम में है,
बे-पिए दर्द अगर है तो मेरे जाम में हैं। ‘अमीर’ मीनाई
बढ़ गयी हैं और भी अब तल्खियाँ इस बज़्म की,
वो सुराही, वो सुबू, वो साक़ी-ए-कौसर कहां। मसूदा ‘हयात’
पाऊं उजाला इस जीवन में हमको कहां नसीब,
दुर अंधेरा हो सके जब तुम ही नहीं करीब।
मुस्कुराओं सदा कमल सा यही तमन्ना मेरी है,
एक बनेंगे जल्द ही दोनों चन्द दिनों की देरी है।
कहती हूं मन में बादल से उड़ा ले चलो दूर,
उसी पांव पे जाके पटकना जहां हों मेरे हुजूर।
मुझे मैख़ाना थर्राता हुआ महसूस होता है,
वो मेरे सामने शरमा के जब पैमाना रखते हैं। अख़्तर शीरानी
एक क़तरा भी न पीता मगर ऐ. जाने-जहां,
उसी अन्दाज़ से कद दे कि नहीं थोड़ी-सी। अमीर मीनाई
इलाही कैसी-कैसी सूरतें तुमने बनाई हैं,
कि हर सूरत कलेजे से लगा लेने के काबिल है। अकबर इलाहाबादी
ऐ जमाले-नज्म, हुस्ने- कहकशां,
चांद है मोहताज तेरे नूर का। साजन पेशावरी
अपने मरकज की तरफ माइल-ए-परवाज था हुस्न,
भूलता ही नहीं आलमात मेरी अंगड़ाई का। निजाम लखनवी
चांद तारों में यह कोशिश क्यों है,
गर तेरे हुस्न का जुहूर नहीं। नाज मुरादाबादी
शम्सो-कमर है दस्त- बस्ता, फूल सिरानंगू,
किस-किस को तेरा पासे-एहतराम नहीं है। अभिलाष
जिसकी हरेक अदा पै हो सदके हजार दिल,
उस हुस्ने-जिन्दगी को लबे-बाम देखते हैं। वफा मेरठी
आता नहीं हमको राहें वफा दामन बचाना,
तुम्हीं पर जान दे देंगे एक दिन आजमा लेना।
जो गिर चुका उसे और क्यों गिराते हो,
जलाकर आशियाना उसी की राख उड़ाते हो।
जब तक ना मिले थे थी जुदाई की कयामत,
अब मिल के बिछुड़ने का गम याद रहेगा।
हजार सूरतें, तेरी निगाहों से दूर हो,
तेरा ख्याल ही काफी है इन चन्द लम्हों के लिए।
बन जाऊं न बेगानाए-आदाबे मुहब्बत,
इतना न करीब आओ, मुनासिब ही यही है। जिगर
दिल सरापा दर्द था वो इब्तिदाए- इश्क थी,
इन्तेहा ये है कि ‘फानी’ दर्द अब दिल हो गया। फानी बदायूंनी
अब इब्तिदाए – इश्क का आलम कहां ‘हफीज’,
कश्ती मेरी डुबो के वो साहिल उतर गया। हफीज जाल
जिन्दगी की बस्ती हैं जिन्दगी,
इक दो शय जिसका मुहब्बत नाम है। साजन पेशावरी
दूर ही दूर से इकरार हुआ करते हैं,
कुछ इशारे पस-ए-दीवार हुआ करते हैं। दाग
मुहब्बत के इकरार से शर्म कब तक,
अगर सामना हो तो मजबूर कर दूं। अख्तर सीरानी
साफ जाहिर है निगाहों से कि हम मरते है,
मुंह से कहते हुये यह बात मगर डरते हैं। अख्तर अन्सारी
यह मुहब्बत पर है मेरा तबसरा,
इब्तिदा कुछ थी न कुछ अन्जाम है। साजन पेशावरी
अश्क आंख से, दिल हाथ से, जी तन शरीर से चला जाये,
ऐ वाए मुसीबत ! कोई किस-किस को सम्भाले। मीर ‘मदद’ उल्लाह
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जिसमें हो याद भी तेरी शामिल,
हाय उस बेखुदी को क्या कहिए। रविश सिद्दीकी
साक़ी ठहरा नहीं, ये कह के पिलाता ही रहा,
जाम ख़ाली हो, ये मैख़ाने का दस्तूर नहीं। हीरालाल ‘फ़लक’
जो बात मैक़दे में है इक-इक ज़बान पर,
अफ़सोस मदरसे में है बिल्कुल निहां हुनूज़। ‘शेफ्ता’
चश्मे-साक़ी की मस्तियां तौबा,
हर तरफ़ जैसे मय बरसती है। ‘साहिल’ मानिकपुरी
जब घिर के आयी काली घटा, रिन्दों ने कहा जी-भर के पिला,
इन्कार किया जब साक़ी ने पैमाने टूट गये। अज्ञात
दिल के हर जख्म से आती है वफा की खुश्बू,
जख्म छुप जायेंगे खुश्बू को छुपाऊं कैसे।
जो के जुनून का आज मुझे मिल गया सिला,
अच्छा हुआ जो तुमने भी दीवानी कह दिया।
हजारों चांद-सितारों का खून होता है,
तब एक सुबह फिजाओं में मुस्कुराती है।
हमारी मौत को आंसा बना दो,
हमारी जिंदगी दुश्वार करके।
ज़वानी क्या गई दिल से उमंगे भी हुई रूख़सत,
हम अपने दिल को इक उजड़ी हुई महफिल समझते हैं। प्रभुदयाल फ़हमी
अज़ीब हुस्न है तेरी उदास आँखों में,
सुकूते-सुबहे-अज़ल का आता है। अब्दुल हमीद ‘अदम’
रंग निख़रा है क्या सुभान अल्लाह,
तुम पै और ये शबाब अहद कर दी। तिफ़्ल देहलवी
दुआएं दीजिए बीमार के तबस्सुम को,
हमको तो मुस्कुराये ज़माना गुजर गया। आरिफ़
हमने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन,
खाक हो जायेंगे हम तुमको ख़बर होने तक। मिर्ज़ा ग़ालिब
जवाब सोच के वो मुस्कुराते हैं,
अभी जुबाँ पे मेरी, सवाल भी न था। बेखुद देहलवी
कमज़ोर जान के भी तुझे ऐ ग़मे-फिराक
दिल ने लिया तेरा सहारा कभी-कभी। प्रो. जगन्नाथ आज़ाद
वो शोखिए-मोहतात के बचते हुए अन्दाज़,
दुनिया भी न रहने दे, क़यामत भी न ढाये। फ़िराक़ गोरखपुरी
है जहन में तसव्वुरे-गेसू-ए-अम्बरी,
महकी हुई है रता गज़ल कह रहा हूँ मैं। ज़फ़र श्योपुरी
ग़म तो इसका के वो अहदे-वफ़ा टूट गया,
बेवफ़ा कोई भी हो, तुम न सही, हम ही सही। राही मासूम रजा
तेरी जुल्फे स्याह को साकी,
शब, घटा और शबाब कहते हैं। साहिल मानिकपुरी
बोसा देने में जो पूछा के क्या बिगड़ता है,
बोले, लेने में कहो आपको मिलता क्या है। अज्ञात
मैं ये नहीं कहता कि सज़ा ना दिया करो,
देने से पहले मगर ख़ता बता दिया करो।
ठिकाना और कहाँ है अब इस गरीब का,
एक तेरा दर है ज़ालिम, या उस ख़ुदा का दर।
आपका चेहरा है हमारे लिए चाँद से बढ़कर,
अब तो रोज़ ही हमारे लिए ईद ही ईद है।
जिस शै पे इतराता था बहुत ये ‘सागर’ यारो,
आज ख़ुद ही चला है देखिए ईमान बेचने।
उस शोख में पहली – सी अदा ढूंढ रहे हैं,
हम वो हैं जो अपनी ही कजा ढूंढ रहे हैं। तमन्ना ज़माली
सुन रे मीता तेरे नैन में बजता है संगीत,
जिसकी धुन ने मस्त बनाके हमें बनाया मीत।
दिल मन सब-कुछ अपना ही तेरी झोली में डाला,
रहा काम एक बाकी डालूंगा गले में तेरे जयमाला।
दंग रह गई थी खत भेजा किसने दीदी की ससुराल,
नाम पढ़ा जब तेरा तो हुई शर्म से लाल।
क्या मुहब्बत ग़मों को कहते हैं,
बड़ी हसरत थी आज़माने की। अनवर
नहीं है चांद – सितारों में रोशनी यक़सां,
चरागे-दिल तुझे अहसासे-कमतरी क्यों है। शाकिर श्योपुरी
मैं उसकी हर बात को किस तरह ना मानूं,
वह कुछ भी बोलें वो सच लगता है।
खता साबित करेंगे और और खूब सताएगी,
सुना है कि तुम्हें गुस्से में लिपट जाने की आदत है।
पत्थर का तकिया बांस का बिछौना,
आपको मेरी कसम मेरी लाश पर मत रोना।
रोज कहती थी ना जाऊंगी ना घर उसके,
लेकिन रोज एक नया काम निकल आता है कुचे में उसके।
उनके भालेपन के सदके जाइए,
कहते हैं आपको हमसे क्या काम है।
अजनबी शै थी खुश, घबरा गए,
हँसते ही आंखों में आंसू आ गए ।
करते हो तन्ज क्या मेरे अहदे शबाब पर,
दरिया का बस्तियों की तरफ ही बहाव था।
उसकी रफ्तार है बस मौजा-ए-कौसर की तरह,
गुफ्तगू में है खनक शीशा- ओ सागर की तरह।
बैठे तकते तो हैं कनखियों से,
नहीं पूछते, खड़े क्यों हो।
अदा है शर्त, बनावट भी लुत्फ देती है,
वो खुद भी रूठ गये हैं, मुझे खफा करके।
मेरी आँखें और दीदार आपका,
कयामत आ गई या ख्वाब है।
कल जहां से कि उठा लाए थे, अहबाब मुझे,
ले चला आज वहीं फिर दिले-बेताब मुझे।
Gam hindi shayari
अगर खुद नुमाई से फुरसत कभी हो,
मेरे ग़मकदे में भी तशरीफ लाना।
ऐ पैकर-महबूबी, मैं किससे तुझें देखूं,
जिसने तुझे देखा है, वो दीवां-ए हैरां है।
यकीं था शैख़ को, जन्नत में जाम खनकेंगे,
इसी खुशी में वो प्यासा ही मर गया होगा। ‘क़तील शिफ़ाई
हर जाम में है जल्वाए-मस्ताना किसी का,
मैख़ाना हमारा है ज़िलो-खाना किसी का। ‘अमीर’ मीनाई
पैमान-ए-दिल की तह में कुछ है तरी,
क़िस्मत में कहां फ़िराक़ छलका हुआ जाम। ‘फ़िराक़’ गोरखपुरी
तुम दिखा दो जिसे आंखें वही मख़मूर’ बने,
हम जहां शीशा पटक दें वहीं मैख़ाना बने। जिगर मुरादाबादी
कुछ ऐसी उनके नैन-कटोरों से पी चुके,
नफ़रत-सी हो गयी हमें सहबा-ए-जाम से। वाजिद ‘सहरी’
जिसको आंखों से मये-इश्क़ पिला तूने,
उसी पे दिन-रात बरसती हुई रहमत देखी। अज़ीज़ वारसी
नज़र आता है जब टूटा हुआ सागर कोई ‘शोहरत’,
हम उसको कूच-ए-साक़ी में अपना दिल समझते हैं। शोहरत कानपुरी
मैंने पूछा कि जिंदगी क्या है,
हाथ से गिर के जाम टूट गया। जगन्नाथ ‘आज़ाद’
तड़प के तोड़ दी तोबा तमाम आलम ने,
मेरी नज़र ने जो तेरी नज़र से जाम लिया। कमल कुमारी ‘कमल’
‘साहिर’ अब भी कहीं मिलता है तो मैख़ाने में,
किस क़दर पास है, इस रिन्द की खुद्दारी का। अहमद शुजा ‘साहिर’
ख़ारों पे चलने की अब तो आदत सी हो गई,
ग़र राह में फूल मिलें बड़ी मुश्किल सी होती है।
खुशियों में साथ तो दिया सबने,
ग़म बांटों कहा तो मुस्कुराने लगे।
छोड़ दिया सभी ने मगर ज़िन्दगी ने दामन नहीं छोड़ा,
ऐ मौत देख तेरी सौतन तेरे पास आने नहीं देती।
होकर मेहरबाँ यार ने, आज दिया फिर जख़्म नया
शुक्र है मौला ‘सागर’ की आज फिर दीवाली हो गई।
ये मयकदे की भीड़, ये अंबोह, ये हुजूम,
हम तो निकल के खोए गये ख़ानकाह से। रियाज़ खैराबादी
कम्बख़्त की नीयत क्या पिघला हुआ लोहा है,
भर-भर के छलकते हैं अक्सर यहीं पैमाने। सिराज लखनवी
क्या बलानोश को सामाने-तकल्लुफ़ से गरज,
काम बोतल ही से मैं लेता हूं पैमाने। कुश्ता गयावी
ये हुस्ने-नौबहार ये सावन की बदलियां,
पीना है फ़र्ज और न पीना हराम आज। हसन झटाझट
वो रिन्द है कि अगर मयक़दे से कुछ न मिला,
तो खुद को शीशा-ए-मय में उतार लाये। ज़हूर ‘नजर’
मिलते हैं इस अदा से कि गोया खफा नहीं,
क्या आपकी निगाह से हम आशना नहीं।
देखने वालों का अन्दाज़े-नज़र क्या कहना,
बे-अदाई में भी जालिम की अदा देखी है।
जैसे बसी हो इसमें शमीमे चमन तमाम,
ऐस महक रहा है तेरा पैरहन तमाम।
दिल में जो तेरे बात छिपी है बात अभी वो रहने दो,
हमें भी अपने दिल की बातें आज जरूर ही कहने दो।
नाजुक दिल पे करोगी रानी कब तक अत्याचार,
छिपा बात दिल की कह डालो हमको तुमसे प्यार।
बैठा हूं मैं लिखने को मिलती नहीं कहानी,
बार-बार ये कलम है लिखती है तुम हो मेरी रानी।
सावन आए समीप सजना तेरी याद सताती है,
दिल की हर धड़कन तेरे आने की राह बताती है।
पहले तो समझी थी तुम भी खतम निकले,
कुछ देर बाद जाना तुम छिपे- रुस्तम निकले।
हवाएं तेरे जिस्म का लम्स पाकर,
मुअतर-मुअतर हुई जा रही है।
इन मस्त अंगड़ाईयों को कंवल कह गया हूँ मैं,
महसूस कर रहा हूँ गजल कह गया हूँ मैं। अब्दुल हमीद ‘अदम’
दीवानावार दौड़ के लिपट न जाए,
आँखों में आँखें डाल के देखा न कीजिए। यगाना चंगेजी
तेरे जमाल’ की तस्वीर खींच दूं लेकिन,
जुबां में आँख नहीं, आँख में जुबां नहीं। अज्ञात
जब मिली आँख होश खो बैठे,
कितने हाजिर जवाब हैं हम लोग। जिगर
तेरे पर्दे ने की ये परदादारी,
तेरे छुपते ही कुछ छुपा न रहा।
जलवे तेरी निगाह में, कौनों-मका के हैं,
मुझसे कहां छुपेंगे वो ऐसे कहाँ के हैं।
बात क्या कहिए, जब मुफ्त की हुज्जत ठहरी,
इस गुनाह पर मुझे मारा के गुनाहगार न था।
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हमने अपने आशियाने के लिए,
जो चुभे दिल में, वही तिनके लिए। वहीदुददीन ‘हैदर’
तुझे ऐ बज़्में – हस्ती कौन काफिर याद रखेगा,
मुसाफिर राह की बातों को अक्सर भूल जाते हैं। अब्दुल हमीद ‘अदम’
मुस्कुराकर डाल दी मुख पर नकाब,
मिल गया जो कुछ मिलना था जनाब। जज्बी
तुझको मस्ज़िद है मुझको मैख़ाना,
वाईज अपनी-अपनी किस्मत है। मीर
गुजरी है रात आधी सब लोग सो रहे हैं,
यहां हम अकेले बैठे तेरी यादों में रो रहे हैं।
खुदा जाने मोहब्बत का क्या दस्तूर होता है,
जिसे मैं दिल से चाहती हूं वही मुझसे दूर होता है।
जब खामोशी होती है नजर से काम होता है,
ऐसे माहौल का शायद मोहब्बत नाम होता है।
बचे-खुचे हुए तिनके भी फूंक दे सय्याद,
हंसी उड़ाते हैं सब मेरे आशियाने की। खुमार बाराबंकवी
कहीं वायज़ कहीं पीरे-खरावाते अजीज,
उसको हर रंग में देखा है जहां देखा है। अजीज़ लखनवी
दिल थामता के चश्म पे करता तेरी निगाह,
साग़र को देखता के मैं शीशा संभालता। फ़िराक़ गोरखपुरी
सज़ा-ए-मौत होगी किसको, मेरे कत्ल के बदले,
कोई अकेला तो नहीं है, जिसने मुझको मारा है।
तेरी तस्वीर को सीने लगाकर, रो लिया करते हैं,
हम इस तरह से चन्द लम्हें सो लिया करते हैं हम।
मंज़िल है कोई मेरी न ही मेरा ठिकाना यारो,
मेरी तकदीर में तो राहों की बस धूल लिखी है।
ऐतबार किया ‘सागर’ ने इस जहाँ में लोगों का,
अब मौत से कम क्या सजा मिलेगी इसको।
किया कहर वादे पे वरना शबे-हिज,
मुझे ग़म तो होता पर इतना न होता। निज़ाम रामपुरी
आ जाओ के अब खिलवते-ग़म, खिलवते-गम है,
अब दिल के धड़कने की भी आवाज़ नहीं है। जिगर मुरादाबादी
इसी खराम को कहते हैं फिला-ए-मशहर,
के उस गली में हमारा मज़ार काफी है। बेतार अज़ीमाबादी
आप से मिलाऊं आंख, ये मेरी ताकत है,
देखता हूं के वो अगली सी नज़र है के नहीं।
देखो तो चश्मे-बार की जादू निगाहियां,
हर इक को है गुमां कि मुखातिब हमीं रहे। हसरत मोहानी
ये सानेहा भी मुहब्बत पे बारहा गुजरा,
कि जिसने हाल भी पूछा आँखें भर आई। फिराक गोरखपुरी
पूछा के पाँव क्यों न पड़ते ज़मीन पे,
बोली सबा के आते हैं उनकी गली से हम।
ये हुनर भी बड़ा जरूरी है,
कितना झुक कर किसे सलाम करो। हफ़ीज मेरठी
बुलन्दियों से गिरोगे तो टूट जाओगे,
जबां से अपनी बड़ा बोल बोलते क्यूं हो। महबूब राही
सूरज के हम सफ़र जो बने हो तो सोच लो,
इस रास्ते में प्यास का दरिया भी आएगा। क़तील शिफ़ाई
नींद आये तो अचानक तेरी आहट आये,
जाग उठू तो बदन से तेरी खुशबू आए। शहज़ाद अहमद
आया था साथ ले के मुहब्बत की आफतें,
जायेगा साथ ले के जमाना शबाब का। जिगर बिसवानी
बला है कहर है, आफत है, फिना है, कयामत है,
हसीनों की जवानी को जवानी कौन कहता है। अर्श मल्सिसानी
जवानी की दुआ लड़कों को नाहक लोग़ देते हैं,
यही लड़के मिटाते हैं, जवानी को जवां होकर। अकबर इलाहाबादी
घटा, सब्जा, सितारे, फूल सब अपनी जगह बरहम,
तेरी काफिर जवानी, फिर तेरी काफिर जवानी है। माहिर उल्कादरी
बुलन्दियों पे पहुंचना कोई कमाल नहीं,
बुलन्दियों पे ठहरना कमाल है। अशोक ‘साहिल’
क्या भरोसा है जिंदगानी का,
आदमी बुलबुला है पानी का। अज्ञात
कोई तहरीर मिटायें तो धुआं उठता है,
दिल वो भीगा हुआ काग़ज़ है कि जलता ही नहीं। मुमताज राशिद
पी है अगर शराब तो कुछ लुत्फ उठाइए,
शरा क्यों इतनी अहमियत ज़रा लड़खड़ाइये।
अब दिल में न हसरत है, न अरमान है वाकी,
बाकी है अगर कुछ तो वो है याद आपकी। अज्ञात
देखिए, अब न याद आइये आप,
आजकल आपसे खफा हूं मैं। नसरीन
Sad hindi shayari
तेरे गम में बह गया है मेरा एक-एक आंसू,
नहीं अब कोई सितारा जो चमक सके गगन में। कतील शिफाई
किसी के साथ जब गुज़रे हुए दिन याद आते हैं,
तो कुछ नश्तर’ से जैसे दिल में चुभकर टूट जाते हैं। मुहसिन जैदी
अपनी ज़िन्दगी का सफ़र कुछ ऐसे बिताया हमने,
कि दोस्त मिलते रहे और ज़ख़्म देते गए।
दो आँसू बहाए, दिल का दर्द हल्का किया,
इससे बढ़कर ‘सागर’ तुझसे उम्मीद भी कोई न थी।
ये और बात कि इसको यूँ गँवा रहे हैं हम,
वर्ना ज़िन्दगी को जीने की तमन्ना हम भी रखते थे।
इस भरी दुनिया में कभी भी न कोई खुशी देखी,
तेरे बाद अपनी ज़िन्दगी में हमने ये कमी देखी।
ऐ दिल ! कभी-कभी तो खुद आती है उनकी याद,
कम्बख्त बार-बार न आए तो क्या करूं? अदम
यादे-माजी के सिवा कौन है आने वाला?
मेरे दरवाजे पे पहरा न बिठाओ लोगों। ‘अख्तर’ नज्मी
फिर दिल की ख्वाबगाह’ में माजी का बांकपन,
आवाज दे रहा था कि तुम याद आ गए। अज्ञात
यादे-माजी है अजाब या रब,
छीन ले मुझसे हाफिजा मेरा। अख्तर अन्सारी
याद आ रहे हैं, वो मुझे बीते हुए बिसाल,
चाहत की चांदनी में वो तड़पते हुए बदन। कृष्ण मोहन
रात क्यों नब्जे-जहां रुक-सी गई थीं ऐ दोस्त,
हां, तेरी याद में मसरूफ थे हम, याद आया। आरिक अब्बासी
तड़पकर याद में तुमने कहीं सिसकी भरी होगी,
हमारी डूबती धड़कन अचानक जो उभर आई। सुनील शर्मा
मैं उदास कैसे होता तेरी बेवफाइयों पर,
तेरी बेरुखी पे मुझको तेरी और याद आई। ‘फरीद’ अब्बासी
आती है याद अक्सर, रोते हैं बेवसी में,
एक बेवफा को हमने चाहा था जिन्दगी में। जोश
तुम, वो तुम ही न रहो-भूल सकूं गर तुमको,
मैं, वो मैं ही न रहूं, तुम जो कसे याद मुझे। ‘रजा’
हमने दिखा-दिखा तेरी तस्वीर जा-व-जा,
हर इक को अपनी जान का दुश्मन बना लिया। आजाद
उसने कुछ लुत्फ से पूछा कि ‘असर’ कैसे हो?
बेखुदी का हो बुरा, कह दिया कुछ याद नहीं। ‘असर’ लखनवी
वो बेवफा कहे मुझे, जिससे वफा करूं,
मैं बदनसीब अपने मुकद्दर को क्या करूं। “बेखद” देहलवी
हम अपना रहनुमा उनको पान लें कैसे,
जो पेशे आते हैं राहरौ से, रहज़नों की तरह।
भवे तनती हैं, खंजर हाथ में है, तन के बैठे हैं,
किसी से आज बिगड़ी है जो वो यूं तन के बैठे हैं।
क्या हुस्न है क्या रंग है क्या जमाल है,
वो भीड़ में भी जाएं तो तनहा दिखाई देते हैं।
कैफियते-चश्म उनकी मुझे याद है ‘सौदा’,
सागर को मेरे हाथ से लेना कि चला मैं। सौदा
आँख क्या है मोहनी है, सेहर है, एजाज है,
इक निगाहे-लुत्फ में सारा गिला जाता रहा। अमीर मीनाई
मरे हुए तेरी आँखों पे यार हम भी हैं,
शहीदे गर्दिशे लैलो निहार हम भी हैं। अज्ञात
वो चीज कहते हैं फिरदौसे-गुमशुदा जिसको,
कभी-कभी तेरी आँखों में पाई जाती है। जिगर
आँखें दिखाईयो न तुम ए दिलरुबा मुझे,
इन खिड़कियों से झांक रही है कजा मुझे। अज्ञात
दीदार की प्यासी आंख अब भी ढूंढती है,
उन्हें जो भूल चुके हैं हमारा ठिकाना।
जमाने से बिगड़ी थी तुम्हें अपना बनाया,
रखेगा याद कब्रों में किसी से दिल लगाया था।
झूठ लिखूं तो सारी ब्याजें तुझसे ही मंसूब करूं,
सच बोलूं तो औरों का लिखने में ज़िक्र भी आता हैं। हुमेरा रहमान
मैं तेरा बिस्तर रखूँ आबाद तू आंगन मेरा,
मैं बदन भर फूल हूँ और तू दिया भर आग है। इशरत आफ़री
हमारी तो तमन्ना है कि तुम खुश रहो,
हम तो जिएंगे दर्दे दिल के सहारे जो तुमसे मिला।
देख तेरे प्यार में क्या हाल है मेरा,
लाश हूँ मैं कफन का बंधा है सेहरा।
आशिक जलाए नहीं दफनाये जातें हैं,
कब्र खोद कर देखो इंतजार करते पाए जाते हैं।l
जी रहा हूं इस ऐतमाद के साथ,
जिंदगी को मेरी ज़रूरत है। काबिल अज़मेरी
बेच डाला हमने कल अपना ज़मीर,
ज़िन्दगी का आख़री ज़ेवर गया। राजेश रेड्डी
दुनिया हजार जुल्म करे उसका गम नहीं होता,
मारा जो तुमने फूल तो वो पत्थर से कम नहीं होता।
मेरी मोहब्बत में मुलाकात नहीं होनी थी,
रोज मिलते हैं मगर बात नहीं होनी थी।
Hindi shayari Girlfriend
कब तक तू तरसेगी तरसाएगी मुझको,
सिर्फ एक बार कह दे मुझको तुमसे प्यार नहीं।
हमारे प्यार को ठुकरा दिया बेवफा,
फिर भी हमें तुमसे कोई गिला नहीं।
जाम में जब तक थी, अच्छी थी शराब,
हलक’ से उतरी तो दिल घबरा गया। हीरालाल ‘फ़लक’
फ़सले बहार आयी पियो सूफियों शराब,
बस हो चुकी नमाज़, मुसल्ला उठाइये। आतिश
वो ताक में में धरी है सुराही शराब की,
तौहीन हो रही है शबे-माहताब की। फारिग बुखारी
मुश्किल फन है ग़ज़लों की रोटी खाना,
बहरों को भी शेर सुनना पड़ता है। डा. राहत इन्दौरी
नामेह को बुलाओ मेरा ईमान संभाले,
फिर देख लिया उसने शरारत की नजर से? हफीज जालन्धरी
निमाहे मस्त से उसकी हुआ ये हाल मेरा,
कि जैसे पो हो किसी ने शराब बरसों में। दाग
खुद्रा की शान, जिन्हें बात करनी न आती थी,
वो अब करे हैं सवालो-जवाब आंखों में। वजीर
Hindi shayari Boyfriend
शायद हमको तो कफन भी नसीब न हो यारब,
हम जैसे कम नसीबों का ऐसा ही हशर होता है।
ज़माने ही बीत गए हैं भले बिछुड़े हुए तुमसे ऐ दोस्त,
तुम्हारे बदन की खुशबू आज भी हमारे बदन से आती है।
सच्च तो ये हैं कि ठोकरें खाने की आदत सी हो गई,
वर्ना किस की इतनी हिम्मत जो ‘सागर’ को ठुकराए।
आपकी आँखों से होता है जब भी नशा,
फिर हमको किसी बात का होश नहीं रहता।
हम मजबूर थे वर्ना तुझे जाने ही क्यों देते
कुछ तुम्हारी मजबूरीयों का भी ध्यान रहा हमको।
आँखें तेरी झुक रही हैं मुझसे मिलकर,
दीवार से धूप उतर रही है. गोया ‘जोश’ मलीहाबादी
रिन्द जब मांगने बैठे तो कसर क्यों छोड़े,
जाम साक़ी से तो गरदूं से घटा मांगी है। हीरालाल ‘फलक’
ज़िन्दगी उस रिन्दे सहबानोश’ की है ज़िन्दगी,
सुबह जिसको गुलरुखों में, शाम मैख़ाने में हो। ‘अजमल’ जालंधरी
ये हुस्ने-नौबहार, ये सावन की बदलियां,
पीना है फ़र्ज़, और न पीना हराम आज। हसन ‘झटाझट’
याद इतना है कि पहुंचा भी दो मैख़ाने तक,
क्या कहूं आगे की, आगे का मुझे होश नहीं। अज्ञात
उठ चले शैख़ जी तुम मजलिसे-रिन्दा से शताब,
हम से कुछ खूब मदारात न होने पायी। मीर ‘दर्द’
आज साक़ी देख तो क्या है अजब रंगीं हवा,
सुर्ख मय काली घटा और सब्ज़ है मीना का रंग। बेदार देहलवी
औरों को पिला जाम से पर मुझको तो साक़ी,
इक घूंट बस उसका कि जो आंखों में खिंची हो। जलील गोरखपुरी
मय की, मयख़ाने की, खुम की, जाम की, मीना की खैर,
मस्त आंखों का तसद्दुक़ एक पैमाना हमें। जलील मानिकपुरी
फ़राके-जामो-सुबू, मोहत्सिब है मौत मेरी,
पकड़ के हाथ न यूं मैकदे के बाहर खींच। ‘अज़ीज़’ क़ादरी
प्रिय सजन मैं प्रेम पत्र को करती हूं स्वीकार,
मेरे हुस्न जवानी पे सिर्फ तेरा अधिकार।
हो मेरी तुम अभिलाषा नैनों से तुझे निहारूंगा,
ऐसे निहारूं जीवन भर मैं पलक कभी न मारूंगा।
दिल कहता है तुम्हें दिखाऊंगा अपना सीना चीर,
झांक के तुम भी देख सको कितनी तुम बिन पीड़।
तूने जिस अश्क पर नजर डाली,
जोश खाकर वहीं शराब हुआ। ‘जिगर’ मुरादाबादी
इधर भी एक निगाहे- लुत्फ़े-खुम की खैर ऐ साक़ी,
हमें भी एक चुल्लू मय किसी टूटे प्याले में। ‘अमीर’ मोनाई
तुम क्या जानो तुम पर कितनी मरती हूं मैं,
चुपके नहीं खुले आम प्रीत करती हूं मैं।
मुझे तो ऐसा लगता है गोरी तू बेगानी हो गई,
लेकिन ऐसा प्यार देखके हमको हैरानी हो गई।
ये आप-आप क्या रटती हो जल्दी बदलों तुम में,
आज की मुलाकात खत्म मिलेंगे फिर अगले जुम्मे।
हे मृगनयनी सचमुच मेरी जीने की नहीं आस,
दिल ने दिल को क्यों ठुकराया सोच रहूं उदास।
मैंक़दे के मोड़ पर रुकती हुई,
मुद्दतों की तश्नगी थी मैं ना था। अदम
आपकी मख़मूर आंखों की कसम,
मेरी मयख्वारी अभी तक राज़ है। मजाज़ लखनवी
इतनी पी है की बादें-तौबा भी,
बेपीए बेखुदी-सी रहती है। रियाज
जनाजा रोक कर वो मेरे से इस अन्दाज से बोले,
गली छोड़ने को कही थी हमने तुमने दुनिया छोड़ दी।
शाम होते ही बझा दिये सब चिराग,
एक दिन ही बहुत तेरी याद में जलने के लिए।
आशिक न होते ये दर्द ना हमको मिलता,
कोई इस दर्द की जहां में दवा कोई दवा नहीं।
मौत आ गई तुम ना आए मरने के बाद भी,
आंखें तड़फती रह गईं आपकी याद में।
हाय सीयाब उसकी मजबूरी,
जिसने की हो शराब से तौबा। सीमाब अकबराबादी
आरजू जाम लो झिझक कैसी,
पी ली और दहशते-गुनाह गयी। आरजू लखनवी
Conclusion :-
इस पोस्ट में हम आपके लिए एक हजार New Hindi Shayari (नई हिंदी शायरी) शायरी लेकर आए हैं, जो पहले इंटरनेट पर कहीं नहीं मिलेगी। हो सकता है इसमें कुछ शब्दों में मात्राओं की गलती हो सकती है तो उसे नजरअंदाज करें और आगे किस तरह की शायरी आप पढ़ना चाहते हैं। नीचे कमेंट में जरूर लिखें हम उस पर एक नया आर्टिकल आने की कोशिश करेंगे। पोस्ट पढ़ने के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद!
FAQ on Shayari
शायरी क्यों लिखते है?
शायरी लिखना लोगों का शौक होता है। जो शायरी के द्वारा अपने मन के भाव लोगों के सामने प्रकट करते हैं।
शायरी किस भाषा में लिखी जाती है?
वैसे शायरी उर्दू भाषा में लिखी जाती थी। लेकिन धीरे-धीरे समय के साथ शायरी में उर्दू, हिंदी, संस्कृत, फारसी, तुर्की, अरबी आदि भाषा के शब्दों का उपयोग किया जाता है।
शायरी की शुरुआत कब से हुई?
वैसे शायरी की शुरुआत 13वीं शताब्दी में हो गई थी। भारत में शायरी की शुरुआत 15वीं शताब्दी के मध्य में हुई थी।
शायरी लिखने वाले को क्या कहते है?
शायरी लिखने वाले को शायर या सुख़नवर कहते हैं।
दुनिया का सबसे मशहूर शायर कौन है?
दुनिया का सबसे मशहूर शायर अमीर खुसरो है।
शायरी के समूह को क्या कहते है?
शायरी के समूह को गज़ल कहते हैं। और आजकल ग़ज़ल में 5 से 15 शेर तक होते हैं।
गजल में कितने शेर हैं?
आजकल ग़ज़ल में 5 से 15 शेर तक होते हैं।
शायरी में मिश्रा किसे कहते हैं?
शायरी में 2 पंक्तियां होती है और दोनों पंक्तियों को मिश्रा कहते हैं पहली पंक्ति कोमिसरा-ए-उला और दूसरी पंक्ति को मिसरा-ए-सानी।
भारत के मशहूर शायर कौन है?
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गुलजार
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राहत इंदौरी
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