Best Motivational Suvichar in Hindi 2021 | सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक सुविचार हिंदी में 2021 

Suvichar In Hindi (सुविचार हिंदी में) ऐसे विचार हैं जिन्हे पढ़कर आप अपने जीवन में उतारने को मजबूर हो जाएंगे । बहुत ही इंस्पाइरिंग विचारों की ख़ूबसूरती भी बहुत अलग ही होती है यह विचार आपके तनाव दूर कर देंगें जिससे आपको सुकून और शान्ति का अनुभव होगा है।

आज आपके सामने ऐसे ही सुविचर हैं जिन्हे पढ़ कर आप अपने व्यवहार, शैली और सम्पूर्ण जीवन को सकारात्मक बना पाएंगे। आइए दोस्तों आज ठान ले की इन सुविचारों को न सिर्फ पढेंगे किन्तु इन विचारों को अपने जीवन में उतार कर प्रेरणा का स्त्रोत बनाएंगे।

Best Motivational Suvichar in Hindi 2021 | सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक सुविचार हिंदी में 2021 
Best Motivational Suvichar in Hindi 2021 | सर्वश्रेष्ठ प्रेरणादायक सुविचार हिंदी में 2021

Best WhatsApp Suvichar in Hindi

अन्याय के सामने जो छाती खोलकर खड़ा हो जाए वही सच्चा वीर है। *प्रेमचंद*

विषय के समान दूसरा कोई मद नहीं है। यह क्षण भर में मुनियों के भी मन में मोह पैदा कर देता है। *गोस्वामी तुलसीदास*

सारे विषय-भोग विष से भी भयंकर हैं। *शंकराचार्य*

विषयों को हमने नहीं भोगा, बल्कि विषयों ने ही हमें भोग लिया। हमने तप को नहीं तपा, विषयों ने हमें तपा डाला। *भृर्तहरि*

विषय के सुखों में घोर दुःख भरा है। प्रारम्भ में वे मीठे लगते हैं लेकिन अन्त में उनके कारण सन्ताप ही होता है। -समर्थ गुरु रामदास *

यह सच है कि कुछ ऐसी नौकाएं भी किस्मत से तट पर आ लगती हैं जिन्हें ठीक दिशा में नहीं चलाया गया। जो व्यक्ति अस्थिर मन से इधर-से-उधर भागता रहता है, पहले इस मार्ग से जाता है, फिर उससे, वह जीवन की यात्रा पूरी करने से पहले ही संसार सागर में डूब जाएगा, यह बिल्कुल निश्चित है। *इब्सन*

हर व्यक्ति को यह अधिकार है कि वह चाहे जिस वस्तु की इच्छा करे, लेकिन उसे प्राप्त वही कर पाता है जिसका शारीरिक एवं मानसिक संतुलन सही हो। केवल इच्छा करने मात्र से कुछ नहीं होता। *अज्ञात*

जो मनुष्य भगवान की चरण सेवा छोड़कर विषय भोग में लिप्त हो जाते हैं, वे बड़े अभागे हैं। *गोस्वामी तुलसीदास*

वृद्ध कैसे होते हैं, यह जानना एक बुद्धिमत्ता का कार्य है और वृद्धावस्था में जीवनयापन की कला एक क्लिष्टतम पाठ है। *एमिएल*

जैसे मैं वृद्धावस्था के कुछ गुणों को अपने में समाविष्ट करने वाला युवक चाहता हूं, उतनी ही प्रसन्नता मुझे युवाओं के गुणों से युक्त वृद्ध को देखकर होती है। जो इस नियम का पालन करता है, वह शरीर से भले ही वृद्ध हो जाये किन्तु मस्तिष्क से कभी वृद्ध नहीं हो सकता। *सिसरो*

विज्ञान में इतनी विभूति है कि वह काल के चिह्नों को भी मिटा दे। *प्रेमचंद*

विज्ञान को विज्ञान तभी कह सकते हैं जब वह शरीर, मन और आत्मा की भूख मिटाने की पूरी ताकत रखता हो। *महात्मा गांधी*

पौराणिक कथाओं के पुराने आश्चर्य से भी विज्ञान आगे बढ़ गया। *इमर्सन*

कायर जीवित ही मरत, दिन में बार हजार, प्राण पखेरू वीर के, उड़त एक ही बार। *अज्ञात*

जिसे स्वयं पर विश्वास नहीं, उसे ईश्वर में विश्वास नहीं हो सकता। *विवेकानंद*

बिना विश्वास के कार्य करना सतहहीन गड्ढे में गिरने के समान है। *महात्मा गांधी *

विश्वास जीवन है, और अविश्वास मृत्यु। *रामकृष्ण परमहंस*

विश्वास अपने को ईश्वर की मर्जी पर पूरी तरह छोड़ देता है। *समर्थ गुरु रामदास*

जो कुछ मैंने देखा है, वह मुझे शिक्षा देता है कि जो कुछ मैंने नहीं देखा उसके लिए विश्व के स्रष्टा पर विश्वास करूं। *इमर्सन*

हम विश्वास के आधार पर चलते हैं, दृष्टि के आधार पर नहीं। *बाइबिल *

 

Suvichar in Hindi for Life | Hindi Suvichar on Life
Suvichar in Hindi for Life | Hindi Suvichar on Life

तुम अपने जीवन का निरीक्षण करो, विश्लेषण करो। देखो अपने जीवन को। यदि तुम्हारे जीवन में शांति बढ़ रही है, संतोष बढ़ रहा है, आनंद बढ़ रहा है तो तुम्हारा जीवन सही है। यदि अशांति बढ़ रही है, तनाव बढ़ रहा है और जीवन बोझिल हो रहा है तो गलत है। यह बात स्वयं सोचो, स्वयं विचारो। किसी दूसरे से पूछने की जरूरत नहीं। जीवन की दिशा बदलो, जीवन का मार्ग बदलो। *स्वामी कूटस्थानंद*

आदमी अकेला भी बहुत कुछ कर सकता है। अकेले आदमी ने ही प्रारंभ से विचारों में क्रांति पैदा की है। अकेले आदमियों के कृत्यों से सारा इतिहास भरा पड़ा है। *प्रेमचंद*

प्रेम सब से करो, विश्वास कुछ पर करो, बुरा किसी का मत करो। *शेक्सपियर*

जिस वस्तु का अस्तित्व नहीं है, उसे हम विश्वास से उत्पन्न कर सकते हैं। *टेनीसन*

आदमी से ज्यादा विषैला दूसरा जीव नहीं है। *सुकरात*

अपने श्याम (उद्देश्य) के लिए मैं विष का प्याला हँसते-हँसते पी लूंगी। *मीरा*

मूर्ख सत्य का एक ही अंग देखता है और पण्डित (ज्ञानी) सत्य के सौ अंगों को देखता है। *येरगाथा*

सत्य वही कहना चाहिए जो दूसरों की प्रसन्नता का कारण हो। जो सत्य दूसरों के दुख के लिए हो, जिससे दूसरों का दुख बढ़े, उसके संबंध में बुद्धिमान को मौन रहना चाहिए। *विष्णु पुराण*

असत्य सबसे बड़ा विष है। *ऋषि अंगिरा*

विषय-भोग में धन का ही सर्वनाश नहीं होता, इससे कहीं अधिक बुद्धि और कुल का नाश होता है। *प्रेमचंद*

विवेकी मनुष्य को पाकर गुण सुन्दरता को प्राप्त होते हैं। सोने से जड़ा हुआ रत्न अत्यन्त सुशोभित होता है। *चाणक्य*

विवेक बुद्धि की पूर्णता है, यौवन के कर्तव्यों में वह हमारा पथ-प्रदर्शक है। *ब्रूसे*

विवेक केवल सत्य से पाया जाता है। *गैटे*

अपने विवेक को अपना शिक्षक बनाओ। शब्दों का कर्म से और धर्म का शब्दों से मेल कराओ। *शेक्सपियर*

शाश्वत विचार ही विवेक है। *स्वामी रामतीर्थ*

विवेकशाली कीचड़ में पड़े रत्न को भी सहन करते हैं। *हरिऔध*

जीवन की अनिवार्य आवश्यकताओं की संतुष्टि करना पाप नहीं है। शरीर को स्वस्थ बनाए रखना कर्तव्य है अन्यथा हम विवेक के दीप जलाकर अपने मन को सशक्त और शुद्ध नहीं रख सकेंगे। *गौतम बुद्ध*

चाकू सान के पत्थर पर घिसे बिना न तो तेज होता है, न चमकता है। कठिनाइयों, अभावों, प्रतिकूलताओं और संघर्षों का सृजन इसलिए हुआ है कि उनसे टकरा कर मनुष्य अपनी दक्षता और प्रतिभा का विकास करते हुए आत्मबल और मनस्विता की महान विभूतियां अधिकाधिक मात्रा में संग्रह करता रहे। *श्रीराम शर्मा*

सबसे बड़े विद्वान सबसे बड़े विवेकी नहीं होते। *रैनियर*

विश्राम परिश्रम की मधुर चटनी है। *कूपर*

परिश्रम का परिवर्तन ही विश्राम है; इसमें बहुत सत्य है। *महात्मा गांधी*

संसार में प्रत्येक व्यक्ति जन्म से ही अपने लिए एक निश्चित कार्य लेकर पैदा होता है, जो व्यक्ति कार्य करना चाहते हैं, उन्हें संसार में कहीं कोई कमी प्रतीत नहीं होती, किंतु किसी भी कार्य को करने के लिए व्यक्ति का ध्येय उसकी अपनी शक्तियों के अनुरूप होना चाहिए। *वावेल*

प्रकृति ने सभी प्राणियों में मानव को सबसे श्रेष्ठ बनाया है, जो प्रकृति का सहारा लेते हैं, सदा आगे बढ़ते हैं। आपके अंदर भी प्रकृति ने अनगनित गुण भरे हैं। अपने आपको टटोलिए। आपके भीतर कलाकार, लेखक, सैनिक, कुशल व्यवसायी, कोई भी सोया हो सकता है। इधर-उधर भटकने से बेहतर है कि आप उसे पहचानें, उसे जगाएं। *अज्ञात*

कार्य के लिए विश्राम वैसा ही है जैसा नेत्रों के लिए पलकों का होना। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

विश्व में ऐसी बहुत-सी वस्तुएं हैं जिन्हें छोड़ने पर ही पाया जाता है। *शरतचन्द्र*

यदि तुम्हारा हृदय पवित्र है, तो तुम्हारा आचरण भी सुन्दर होगा, यदि आचरण सुन्दर है तो तुम्हारे घर में शान्ति रहेगी, यदि घर में शान्ति है तो राष्ट्र में सुव्यवस्था रहेगी और यदि राष्ट्र में सुव्यवस्था है तो समस्त विश्व में शान्ति और सुख रहेगा। *कन्फ्यूशियस*

विश्वास प्रेम की प्रथम सीढ़ी है। *प्रेमचंद*

दूरी मित्रता को प्रिय बना देती है और विरह उसे मधुर बना देता है। *हावेल*

जैसे अग्नि के लिए आंधी है, वैसे प्रेम के लिए विरह है। वह तुच्छ को तो बझा देता है और महान को प्रकाशमान बना देता है। *ब्रूसे*

सत्य से बढ़कर कोई धर्म नहीं। *पंचतंत्र*

चरित्र एक शक्ति है, प्रभाव है। इसी के कारण लोग मित्र बनते हैं, सहायक और संरक्षक प्राप्त होते हैं, उसी के कारण धन, सम्मान तथा सुख के सुनिश्चित मार्ग खुलते हैं। *जेहाबेज*

मिलन की प्रसन्नता विरह को सह्य बना देती है, यदि ऐसा न होता तो उसे कौन सहता। *गैटे*

कर्मठ जीवन में विराम कहां। *सुभाषित*

जो तुम्हारे विरुद्ध है, उसे तुम अपना पथ-प्रदर्शक मानो। *सुकरात*

गुणों से ही मानव महान बनता है, उच्च सिंहासन पर बैठने से नहीं। प्रासाद के उच्च शिखर पर बैठने से कौआ गरुड़ नहीं बन जाता। *चाणक्य*

जिस प्रकार कड़वी दवा, चाहे वह कड़वी क्यों न हो, रोग दूर कर देती है, उसी प्रकार सहृदयतापूर्ण सलाह चाहे वह कितनी ही कटु क्यों न हो, हमें सही रास्ता दिखाती है। *लुई फिशर*

प्रबल विरोध के अभाव में कोई भी सरकार टिकाऊ नहीं होती। *डिजरायली*

विरोध उत्साही व्यक्तियों को सदा उत्तेजित करता। *शिलर*

Anmol Suvichar in Hindi
Anmol Suvichar in Hindi

Anmol Suvichar in Hindi

जाति मत पूछो, आचरण पूछो। *संयुक्त निकाय*

अपने सुख के दिनों का स्मरण करने से बड़ा दुख कोई नहीं है। *दांते*

यह संसार हमारा कर्म क्षेत्र है। कुछ कर्तव्य करने के लिए ही हमारा जन्म हुआ है, जैसे लोगों का निवास देहातों में होता है और वे काम करने महानगरों में जाते हैं। *रामकृष्ण परमहंस*

चरित्र को उपदेश, कला, कविता और नाटक आदि प्रत्येक कार्य का पोषक और सहायक होना चाहिए। बिना चरित्र के किसी वस्तु का रत्तीभर भी मूल्य नहीं होगा। *जे. जी. हॉलैण्ड*

कठिनाई और विरोध वह देशी मिट्टी है जिसमें शौर्य और आत्मविश्वास का विकास होता है। *जान नील*

विवाह मुख्यतः एक सहयोग भावना का आदर्श है। *डॉ० राधाकृष्णन*

अपने कल्याण के इच्छुक व्यक्ति को कभी स्वेच्छाचारी नहीं होना चाहिए। *सोमदेव*

धन, साधन, समय, कर्म तथा स्थान-इन पांचों का स्पष्ट विचार करके ही किसी कार्य में प्रवृत्त होना चाहिए। *तिरुवल्लुवर*

व्रत से दीक्षा, दीक्षा से दक्षिणा, दक्षिणा से श्रद्धा और श्रद्धा से ही सत्य की प्राप्ति होती है। *ऋग्वेद*

सत्य की ओर ले जाने वाला मार्ग कठिनाइयों से भरा है, जो उस मार्ग पर नहीं चल सकते, वे सत्य को नहीं पा सकते। *स्वामी विवेकानंद*

विवाह से दूसरे दिन ही पुरुष स्वयं को सात वर्ष अधिक वृद्ध अनुभव करने लगता है। *बेकन*

विवाह हानिकारक नहीं है, केवल वह कमजोरी हानिकारक है जो वैवाहिक जीवन में अधिकार जमा लेता है। *स्वामी रामतीर्थ*

विवाह ही एक ऐसा विषय है जिस पर सभी स्त्रियों का एक मत होता है, परन्तु सभी पुरुषों का अलग-अलग मत । *वाइल्ड*

विपत्ति आने पर अपनी रक्षा के लिए व्यक्ति को अपने पड़ोसी शत्रु से भी मेल कर लेना चाहिए। *वेदव्यास*

विपत्तियां हमें आत्मज्ञान कराती हैं, वे हमें दिखाती हैं कि हम किस मिट्टी के बने हैं। *पं० जवाहरलाल नेहरू*

उन्नत चरित्र वाले व्यक्ति का यह स्वभाव है कि वह कमजोर पर नहीं बल्कि ताकतवर पर पराक्रम दिखाता है। *पंचतंत्र*

अन्याय और बेईमानी से जोड़ा गया धन अधिक से अधिक दस वर्षों तक रहता है, ग्यारहवें वर्ष में वह बढ़ा हुआ धन मूल के साथ ही नष्ट हो जाता है। *चाणक्य*

विपत्ति में भी एक गुण है-वह एक पैमाना है जिससे तुम अपने मित्रों को नाप सकते हो। *सन्त तिरुवल्लुवर*

विपत्तियां कभी अकेले नहीं आतीं। *स्वामी गमतीर्थ*

जीवन की आरम्भिक विपत्तियां अनेक बार वरदान सिद्ध होती हैं। *शार्प*

विपत्ति मानव का निर्माण करती है और सम्पत्ति दानव का। *विक्टर ह्यूगो विफलता*

सत्य की ओर ले जाने वाला मार्ग कठिनाइयों से भरा है, जो इस पर नहीं चल सकते, वे सत्य को नहीं पा सकते। *बायरन*

सत्य और दया को मत त्याग। उन्हें अपनी ग्रीवा पर मालावत पिरो ले, अपने हृदय पटल पर अंकित कर ले। *बाइबल*

अहिंसा सत्य का प्राण है। *महात्मा गांधी*

जितनी बार हमारी विफलता हो उतनी बार उठने में गौरव है। *महात्मा गांधी*

असफलता उसी के हाथ लगती है जो प्रयत्न नहीं करता। *ह्वेटली*

इस संसार में वैर से वैर कभी शांत नहीं होता। प्रेम से ही वैर शांत होता है। यही सनातन नियम है। *गौतम बुद्ध*

अंतरात्मा द्वारा निर्धारित मार्ग पर चलना ही वैभव का सबसे छोटा मार्ग है। *अज्ञात*

विफलता के विचार से सफलता का उत्पन्न होना उतना ही असम्भव है जितना बबूल के पेड़ पर गुलाब का फूल लगना। *स्वेट मार्डन*

विलम्ब और अनिश्चतता विफलंता के माता-पिता हैं। *केनिंग*

बसंत ऋतु में फले-फूले वनों में से उत्पन्न एक अनुभूति से भी आप मानवीय नैतिकता के बारे में इतना कुछ सीख सकते हैं जितना समस्त ज्ञानी-विज्ञानी मिलकर भी नहीं सिखा सकते। *वर्ड्सवर्थ*

कुछ कर्म स्वभाव से ही करने योग्य नहीं होते, उसी प्रकार वे भी करने योग्य नहीं होते, जिनमें किया गया पुरुषार्थ निष्फल हो। *विदुर*

सभी प्रिय वस्तुओं एवं प्रियजनों से एक दिन अवश्य वियोग होगा। *गौतम बुद्ध*

वियोग हृदय को और अधिक आसक्त बना देता है। *टामसन हेन्सवली*

विरह का ताप रमणी के सौन्दर्य को सुकुमार बना देता है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

कठिन विरह भी मिलन की आशा में सहन हो जाता है। *कालिदास*

बहुत-सी पुस्तकों में निर्मल आनंद लेने का अटूट भंडार भरा है। वह विद्या के बिना हमें नहीं मिल सकता। *महात्मा गांधी*

एक मात्र विद्या ही परम तृप्तिदायिनी है। *महाभारत*

विद्या से विनय प्राप्त होती है, विनय से योग्यता मिलती है, योग्यता से धन, धन से धर्म और धर्म से सुख की प्राप्ति होती है। *हितोपदेश*

जो सीखता है, मगर विद्या का उपयोग नहीं करता, वह किताबों से लदा भार-वाहक पशु है। *शेख सादी*

विद्या के सामने दूसरी तरह की दौलत कुछ भी नहीं है। *तिरुवल्लुवर*

मूर्ख अपने घर में पूजा जाता है, मुखिया अपने गांव में पूजा जाता है, राजा की पूजा अपने राज्य में होती है, परन्तु विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है। *चाणक्य*

विद्वान वे व्यक्ति हैं, जो अपने ज्ञान के अनुसार आचरण करते हैं। *हजरत मुहम्मद*

विद्वान ज्ञान के जलाशय हैं, स्रोत नहीं। *नार्थ कोट*

हम अत्यन्त विनम्र होकर ही बड़ों की कुछ समता कर सकते हैं। *रविन्द्रनाथ ठाकुर*

विनम्रता और श्रद्धा के सामने तर्क पेश नहीं किया जा सकता। *सुदर्शन*

विनम्रता स्वयं का ठीक-ठीक मूल्यांकन है। *स्वर्जन*

विपत्ति में साथ देने वाले हैं–विद्या, विनय, विवेक, साहस, सत्कर्म, सत्य व्रत और भगवान पर विश्वास। *गोस्वामी तुलसीदास*

Suvichar in Hindi Good morning
Suvichar in Hindi Good morning

यदि सत्य न हो तो अहिंसा की भी रक्षा नहीं हो सकती। -विनोबा भावे *

समाज को उपदेश देने से पहले स्वयं धार्मिक बनो और सत्य की उपलब्धि करो। *स्वामी विवेकानंद*

सत्य को खरीदा नहीं जा सकता। न उसे दान में पाया जा सकता है और न उसे आक्रमण करके जीता ही जा सकता है। आक्रमण संस्कार की वृत्ति है और जहां अहंकार है, वहां सत्य नहीं है। सत्य को पाने के लिए स्वयं को शून्य होना पड़ता है। शून्य के द्वार से उसका आगमन होता है। अहंकार के आक्रमण से नहीं। शून्य की सहनशीलता से वह आता है। सत्य पर आक्रमण नहीं करना है, उसके लिए स्वयं में द्वार देना है। पानी जैसी प्रकृति है सत्य की। जहां जगह होगी, वहीं भरेगा। *ओशो*

कष्ट और विपत्ति मनुष्य को शिक्षा देने वाले श्रेष्ठ गुण हैं । जो मनुष्य साहस के साथ उन्हें सहन करते हैं, वे अपने जीवन में विजयी होते हैं। *बाल गंगाधर तिलक*

विपत्ति वह हीरक रज है जिससे ईश्वर अपने रत्नों को चमकाता है। *लटेन*

चाहे सैकड़ों सूर्य उदित हों, चाहे सैकड़ों चंद्रमा। अंत:करण का अंधकार विद्वानों के वचनों के बिना नष्ट नहीं होता। *अज्ञात*

संसार में आधे से अधिक लोग तो इसलिए असफल हो जाते हैं कि समय पर उनमें साहस का संचार नहीं हो पाता और वे भयभीत हो जाते हैं। *स्वामी विवेकानंद*

विचार का दीपक बुझ जाने से आचार अंधा हो जाता है -विनोबा भावे*

मन के सौंदर्य और चरित्र बल की समानता करने वाली कोई दूसरी वस्तु नहीं। *जे. एलन*

विषयों की खोज में दुख है। जिसकी प्राप्ति होने पर तृप्ति नहीं होती है और उसका वियोग होने पर शोक होना निश्चित है। *अश्वघोष*

अच्छे विचार भीतरी सुन्दरता है। *स्वामी रामतीर्थ*

आचरणरहित विचार कितने ही अच्छे क्यों न हों, उन्हें खोटे मोती की तरह समझना चाहिए। *महात्मा गांधी*

विचार ही हमारे मुख्य प्रेरणास्रोत होते हैं। मस्तिष्क को उच्चतम विचारों से भर दो। प्रतिदिन उनका श्रवण करो, प्रति मास उनका चिन्तन करो। *विवेकानंद*

जो विचार कार्यरूप में परिणत नहीं होता, उसकी तुलना गर्भपात से की गई है। ऐसे कार्य की, जो विचार पर आधारित नहीं हैं, अस्त-व्यस्तता एवं अराजकता में गणना की जाती है। *पं० जवाहरलाल नेहरू*

महान विचार कार्यरूप में परिणत होते ही महान् कृतियां बन जाते हैं। *हैजलिट*

कुविचार ही सबसे हानिकारक चोर है। *स्वामी शिवानंद*

मनोवृत्ति का परिवर्तन ही हमारी असली विजय है। *प्रेमचंद*

मनुष्य युद्ध में सहस्रों पर विजय पा सकता है, लेकिन जो स्वयं पर विजय पा लेता है, वही सबसे बड़ा विजयी है। *गौतम बुद्ध*

विजय ध्येय की प्राप्ति में नहीं, वरन् उसकी प्राप्ति के लिए निरन्तर प्रयास करने में है। *महात्मा गांधी*

अर्थ देकर विजय खरीदना तो देश की वीरता के प्रतिकूल है। *जयशंकर प्रसाद*

प्रलोभनों का प्रतिरोध कर, प्रत्येक क्षण ही एक महान् विजय है। *फेबर विद्या*

मैं देह नहीं, चेतन आत्मा हूं, इसी को विद्या कहते हैं। *अध्यात्म रामायण*

संसार में सभी वस्तुओं में विद्या सबसे श्रेष्ठ है। न इसे चुराया जा सकता है और न यह प्रयोग करने पर नष्ट होती है। *हितोपदेश*

व्यापार में धर्म और धर्म में व्यापार होना चाहिए। जो व्यक्ति अपने धार्मिक जीवन को व्यापार का रूप नहीं देता, उसका जीवन शक्तिहीन होता है और जो अपने व्यापारिक जीवन को धार्मिक नहीं बना सकता, उसका व्यापारिक जीवन चरित्रहीन हो सकता है। *वेब कॉक*

वासना यदि जीवन में सबसे प्रबल हो उठे तो हमारा जीवन तामसिक अवस्था के त्याग में समर्थ नहीं होता। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

मुख पर झुर्रियां पड़ चुकी हैं, सिर के बाल सफेद हो चुके हैं, शरीर के अंग ढीले पड़ते जा रहे हैं, तो भी मनुष्य की वासना बढ़ती जाती है। *भृर्तहरि*

वासना पर आत्मा की विजय होने से घृणा के बादल एवं विषय वासना की चिंगारियां नष्ट हो जाती हैं। *डॉ० राधाकृष्णन*

जब तक वासना है, तब तक कर्म जारी रहेंगे। कर्म समाप्त करना हो, तो वासना को मारना होगा और वह भगवान् का नाम लेने से ही मरती है। *चैतन्य*

वासना खोटे सोने के समान चमकती तो अग्नि में पड़कर वह चमक स्थिर नहीं रहती। *सुदर्शन*

परिश्रम का कोई विकल्प नहीं है। *ब्रह्मसूत्र*

मन को विकारपूर्ण रहने देकर शरीर को दबाने की कोशिश करना हानिकारक है। *महात्मा गांधी*

ब्रह्मा ने संसार को जड़-चेतन तथा गुण-दोषमय बनाया है। हंसरूपी रूपी गुण को ग्रहण करते हैं और पानीरूपी विकार को छोड़ देते हैं। -गोस्वामी तुलसीदास*

Suvichar in Hindi for Students life with Images

जो शरीर को काबू में रखता हुआ जान पड़ता है, किन्तु मन के विकार का पोषण किया करता है, वह मूढ़ मिथ्याचारी है। *श्रीमद्भगवद्गीता*

विकास ही जीवन है, संकोच ही मृत्यु है। *विवेकानंद*

प्रकृति अपनी प्रगति और विकास में रुकना नहीं जानती और अपना अभिशाप प्रत्येक अकर्मण्यता पर लगती है। *गैटे*

हमारा स्वाभाविक व्यवहार, हमारे व्यक्तित्व को प्रकट करता है। *यशपाल*

योग्यता एक-चौथाई व्यक्तित्व का निर्माण करती है। शेष पूर्ति प्रतिष्ठा द्वारा होती है। *मोहन राकेश*

व्यक्तित्व की सब जगह रक्षा तथा सम्मान करना आवश्यक है, क्योंकि यही सब अच्छाइयों की आधारशिला है। *रिचर*

मनुष्य के लिए व्यक्तित्व पुष्प की सुगन्ध के समान है। *चार्ल्स एम० श्वेब

व्यायाम करने वालों पर बुढ़ापा सहसा आक्रमण नहीं कर पाता। *चरक*

मेरे लिए व्यायाम की परिभाषा बिना थकावट के परिश्रम है। *जॉन्सन*

आनन्द का मुख्य सिद्धांत स्वास्थ्य है और स्वास्थ्य का मुख्य सिद्धांत है व्यायाम। *टामसन*

व्यंग्य तेज कृपाण की भांति अपने मालिक की ही उंगलियों को काट देता है। *ऐरोस्मिथ*

व्यंग्य और ताना मेरी समझ में शैतान की भाषा है। इसी से बहुत दिनों से मैंने उसे छोड़ दिया है। *कार्लाइल*

कोई तलवार इतनी बेदर्दी से नहीं काटती, जितना कि व्यंग्य। -सर पी० सिडनी*

व्यंग्यपूर्ण उक्तियों से बचने के लिए हँसमुख स्वभाव सर्वोत्तम ढाल है। *सी० सिमन्स*

उचित अथवा अनुचित जो काम हो उसे खूब सोच-विचार कर करना चाहिए। सब लोग ऐसे व्यवहार को अच्छा कहते हैं। *तुलसीदास*

जो व्यापार सार्वजनिक व्यापार है, वह किसी का भी व्यापार नहीं है। *आइजक वाल्टन*

दस हजार गुजरे हुए कल, आज की बराबरी नहीं कर सकते। *वर्डस्वर्थ*

कर्त्तव्य और वर्तमान हमारा है, फल और भविष्य ईश्वर का है। *होरेन्स ग्रेले*

वश में करने की कला स्त्री को खूब आती है। *भृर्तहरि*

जो अपने वश में नहीं, वह किसी का भी गुलाम बन सकता है। *मनु*

मन को वश में करो। दुनिया तुम्हारे वश में रहेगी। *वशिष्ठ*

जो अपने उत्तरदायित्व का वहन नहीं करता, उससे बड़ा पातकी और नहीं। *सुश्रुत*

वहम का इलाज़ हकीम लुकमान के पास भी नहीं था। *कहावत*

जो व्यक्ति मुझसे सहमत हो जाते हैं, तो मैं सदा यही सोचता हूं कि मैं गलती पर हूं। *वाइल्ड*

तीव्र और कटु सत्य एक निर्बल कारण के द्योतक हैं। *विक्टर ह्यूगो*

विरोधियों के सम्मुख विवाद करने को मैं बाध्य हूं, किन्तु उन्हें समझाने के लिए नहीं। *डिजरायली*

जो वाणी सत्य को सम्भालती है, उस वाणी को सत्य सम्भालता है। *विनोबा भावे*

शुद्ध हृदय से निकला हुआ वचन कभी निष्फल नहीं होता। *महात्मा गांधी*

संसार रूपी कडुवे वृक्ष के दो फल अमृत के समान हैं-सरस तथा प्रिय वचन और सज्जनों की संगति। *चाणक्य*

हितैषी तथा मनोहर वचन दुर्लभ होते हैं। *भारवि*

वाणी से भी बाणवृष्टि होती है। जिस पर वाणी की बौछारें पड़ती हैं, वह दिन-रात दुःखी रहता है। *महाभारत*

लोकप्रियता से बचो। इसमें बहुत-से फंदे हैं, मगर कोई सच्चा नहीं है। *पैन*

मनुष्य बूढ़ा हो जाता है, परन्तु लोभ कभी बूढ़ा नहीं होता। *सुदर्शन*

ज्यों-ज्यों लाभ होता है, त्यों-त्यों लोभ होता है। इस तरह लाभ से लोभ लगातार बढ़ता ही जाता है *महावीर स्वामी*

वक्त वक्त को नष्ट मत करो, क्योंकि जीवन इसी से बना है। *फ्रेंकलिन*

वक्त सबसे अधिक बुद्धिमान् परामर्शदाता है। *पेरीक्लिज*

Motivational Suvichar in Hindi

वक्त और समुद्र की लहरें किसी का इंतजार नहीं देखती हैं। *कहावत*

विश्वरूपी वृक्ष के अमृत समान दो फल हैं-सरस प्रिय वचन और सज्जनों की संगति। *चाणक्य*

लाभप्रद और चित्ताकर्षक वचन बहुत दुर्लभ होता है। *भारवि*

हँसी-मजाक में भी कडुवे वचन आदमी के दिल में चुभ जाते हैं। *तिरुवल्लुवर*

मीठी बातों से सर्वत्र सुख प्राप्त होता है। कठोर वचन का त्याग करना एक वशीकरण मन्त्र है। -गोस्वामी तुलसीदास*

युक्तियुक्त वचन बालक का भी ग्रहण कर लो, युक्तिशून्य वचन ब्रह्मा का भी त्याग दो। *समर्थ गुरु रामदास*

जो कुछ भी करना है, उसे स्वयं और परमात्मा पर विश्वास रखकर वर्तमान काल में ही करना चाहिए। बीती हुई बात का शोक नहीं करना चाहिए। शोक धैर्य को नष्ट कर देता है। भविष्य में क्या होगा, इसकी चिन्ता भी नहीं करनी चाहिए। बुद्धिमान एवं ज्ञानी पुरुष वर्तमान को सफल बनाने के कार्य में जुटे रहते हैं। *चाणक्य*

जो वर्तमान की उपेक्षा करता है, वह अपना सब कुछ खो देता है‌‌। *शिलर*

लालच भी छूत की बीमारी जैसा है। *शरत्चन्द्र

जैसे-जैसे धन में वृद्धि होती है, लालच बढ़ता जाता है। *जूविनल*

बुद्धि और हृदय के लिए लालच वैसे ही है, जैसे साधु-वृत्ति के लिए इन्द्रिय सुख। *जैक्सन*

एक लापरवाह व्यक्ति की पत्नी विधवा के समान है *हंगेरियन लोकोक्ति*

लापरवाही प्रायः अज्ञानता से भी अधिक क्षति पहुंचाती है। *फ्रेंकलिन*

शेर का बच्चा कभी लीक पर नहीं चलता। *सुभाषित*

लुढ़कता लुढ़कता पत्थर कभी वजनी नहीं हो सकता। *कहावत*

लुहार लुहार बनो, सुनार नहीं। *अष्टावक्र*

धन लूटने सब दौड़ते हैं, पर राम का नाम कोई नहीं लूटता। *तुलसीदास*

लूट का माल पचता नहीं। *कहावत*

महान लेखक अपने पाठक का मित्र और शुभ चिन्तक होता है। *मैकाले*

लिखने में शीघ्रता मुंशी की योग्यता है, लेखक की नहीं। *शरत्चन्द्र*

लिखते तो वह लोग हैं जिनके अन्दर कुछ दर्द है। *प्रेमचंद*

जो लोकप्रिय है, वह खुद का धनी है, किन्तु जो लोकप्रिय बनता है, उसकी दुर्दशा ही होती है। *स्वामी रामतीर्थ*

लक्ष्य को ही अपना जीवन-कार्य समझो। हर समय उसका चिन्तन करो। उसी का स्वप्न देखो और उसी के सहारे जीवित रहो। *विवेकानंद*

उन्नत होना और आगे बढ़ना प्रत्येक जीव का लक्ष्य है। *अथर्ववेद*

आत्मा में परमात्मा का साक्षात्कार प्राप्त करना ही जीवन का परमा लक्ष्य है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

मानव-जीवन में लगन बड़े महत्व की वस्तु है। जिसमें लगन है, वह बूढ़ा भी जवान है, जिसमें लगन नहीं वह जवान भी मृतक है। *प्रेमचंद*

सच्ची लगन को कांटों की परवाह नहीं होती। *प्रेमचंद*

लगन से ज्ञान मिलता है, लगन के अभाव में ज्ञान खो जाता है। *बुद्ध*

धनहीन प्राणी को जब कष्ट-निवारण का कोई उपाय नहीं रह जाता, तो वह लज्जा को त्याग देता है। *प्रेमचंद*

यह बात याद रखनी चाहिए कि व्यर्थ की लज्जा आवश्यक लज्जा को मार डालती है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

यदि कोई सुन्दरी लज्जा त्याग देती है, वह अपनी सुन्दरता का सबसे बड़ा आकर्षण खो देती है। *सेंट ग्रेगरी*

सौन्दर्य और सद्गुणों का प्रासाद है लज्जा। *डिमेड्स*

लाचारी में शेर भी बिल्ली बन जाता है। *सुभाषित*

लाचारी का लाभ कौन नहीं उठाता। *गांगेय*

लाठी का वार मिथ्या हो सकता है। मन पर उसका वार नहीं होगा *कार्लाइल*

जिसकी लाठी, उसकी भैंस। -कहावत*

तुम्हारी लाठी तुम्हारे कफन की कील साबित होगी। *लाला लाजपतराय*

बड़े आदमियों के रोग भी बड़े होते हैं। वह बड़ा आदमी ही क्या जिसे कोई छोटा रोग हो। *प्रेमचंद*

फौजों और हथियारों की शक्ति पर विश्वास करना एक बहुत बड़ा रोग है। इस रोग ने संसार को बहुत कष्ट पहुंचाया है और लोगों को भयभीत कर दिया है *डॉ० राधाकृष्णन*

गरीब रोटी ढूंढता है अमीर भूख। *डेनिश कहावत*

आदमी केवल रोटी से नहीं जीवित रहता। *बाइबिल*

रोना व्यर्थ है। पराजय को स्वीकार कर आगे बढ़ जाओ। *शंकराचार्य*

कायरों में ही रोने की आदत होती है। *सुभाषित*

दिल की लगी लाइलाज है। *कहावत*

लगातार हाथों की पकड़ काली चीज को भी चाँदी-सा चमका देती है। *डेल कारनेगी*

जब कोई तुमसे लचककर बात करे, तो समझो कुछ मांगने वाला है। *कार्लाइल*

ललाट की रेखा मत पढ़ो, कर्मण्यता से उसको मिटाओ। *इब्सन*

जहां मूर्ख नहीं पूजे जाते, वहां अन्न संचित रहता है और जहां स्त्री- -पुरुष में कलह नहीं होता, वहां लक्ष्मी आप ही आकर विराजमान रहती है। *चाणक्य*

मलिन वस्त्र वाले, गन्दे दांत वाले, बहुत खाने वाले, कठोर बोलने वाले और सूर्योदय एवं सूर्यास्त के समय सोने वाले को लक्ष्मी त्याग देती है, चाहे वह विष्णु ही क्यों न हो। *चाणक्य*

लक्ष्मी के सात साधन हैं-धैर्य, क्षमा, इन्द्रिय दमन, पवित्रता, करुणा, कोमल वचन तथा मित्रों से अद्वेष। *महाभारत*

राजनीति साधारण नाड़ी की धड़कन मात्र है और क्रांति ही इसका ज्वर है। *बैंडेल फिलिप*

जिन्होंने राष्ट्रों का निर्माण किया, उनकी कीर्ति अमर हो गई। *प्रेमचंद*

जातियां व्यक्तियों से बनती हैं, लेकिन राष्ट्र का निर्माण केवल संस्थाओं के द्वारा ही होता है। *डिजरायली*

अधिक जनसंख्या होने से या हमारे देशों को हड़पकर कोई भी राष्ट्र शक्तिशाली नहीं हो सकता। *रस्किन*

राष्ट्रीयता भयानक रूप से संक्रामक बीमारी है। *आइन्स्टाइन*

रिश्वत देकर एक सच्चे आदमी का वोट खरीद लेने के लिए सारे संसार की सम्पत्ति भी अपर्याप्त है। *सेंट ग्रेगरी*

चोर को अदालत में बेंत खाने से उतनी लज्जा नहीं आती, स्त्री को कलंक लगने से उतनी लज्जा नहीं आती, जितनी किसी हाकिम को अपनी रिश्वत का पर्दा खुलने पर आती है। *प्रेमचंद*

रिश्वत के धन से न्यायाधीश और सिनेट के सदस्य भी खरीदे गए। *पोप*

प्रत्येक व्यक्ति की रुचि एक-दूसरे से भिन्न होती है। *कालिदास*

हमारी रुचि हमारे जीवन की कसौटी है और हमारे मनुष्यत्व की पहचान। *रस्किन*

रूप कोई अच्छी वस्तु नहीं है, वह मन को दबा देता है, हृदय को ढक देता है। *रविन्द्रनाथ टैगोर*

असली रूप तो अपने गुणों से ही झलकता है। अपनी छाप गुणवान होकर डालनी चाहिए, रूपवान होकर नहीं। *महात्मा गांधी*

Best Suvichar in Hindi Status 2021

रूप-तृष्णा यदि पुरुषों के लिए निन्दाजनक है, तो स्त्रियों के लिए विनाशकारक है। *प्रेमचंद*

अंधा बांटे रेवड़ी, चीन्ह-चीन्ह देय। *कहावत*

जिसकी शस्त्रों से रक्षा हो ही नहीं सकती, उसकी यदि शस्त्रधारी रक्षा न कर सके, तो इससे उसका अपयश नहीं होता। *कालिदास*

परम वास्तविकता (ईश्वर) का रहस्य वही व्यक्ति समझ सकता है, जिसे किसी से ईर्ष्या न हो। *श्रीमद्भगवद्गीता*

ऐसा कोई भी रहस्य नहीं है, जिसका उद्घाटन नहीं होता। *बाइबिल*

यदि तुम अपने रहस्य शत्रु से छिपाकर रखना चाहते हो, तो अपने किसी मित्र से भी उनकी चर्चा मत करो। -फ्रेंकलिन *

प्रत्येक व्यक्तित्व विश्व का एक रहस्य है। *जे०सी० पोविस*

सपने में भी राग, द्वेष, ईर्ष्या, मद और मोह के वश में नहीं होना चाहिए। *तुलसीदास*

सबसे ऊंचा आदर्श राग-द्वेष से मुक्त हो जाना है। *महात्मा गांधी*

राग और द्वेष-ये दो कर्म के बीज हैं। कर्म मोह से पैदा होता है। कर्म ही जन्म-मरण का मूल है और जन्म-मरण ही वास्तव में दुःख है। *महावीर स्वामी*

राग न होने से आवागमन नहीं होता। *गौतम बुद्ध*

कांटों का ताज पहनना आसान है, पर राज-मुकुट संभालना, पहनना आसान नहीं। *लुई 13वें*

इस बात से सहमत नहीं हूं कि धर्म का राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं। धर्म से विलग राजनीति मृतक शरीर के तुल्य है, जो केवल जला देने योग्य है। *महात्मा गांधी *

राजनीति साधुओं के लिए नहीं है। *बालगंगाधर तिलक*

राजनीति कुछ व्यक्तियों के लाभार्थ अनेक व्यक्तियों का उन्माद है। *पोप*

इन्द्रियों की स्थिरता को ही योग माना गया है। जिसकी इन्द्रियां स्थिर हो जाती हैं, वह अप्रमत्त हो जाता है। योग का अभिप्राय है शद्ध संस्कारों की उत्पत्ति और अशुद्धि का विनाश। *कठोपनिषद*

गृहस्थ धर्म का पालन करने वाला सबसे बड़ा योगी है। *श्री कृष्ण*

योग्य नहीं बनोगे, तो तुम्हें योग्यता का पारितोषिक कौन देगा। *शरत्चन्द्र*

योग्यता के अभाव में यदि हम परस्पर मिलना-जुलना बन्द कर दें, तब तो हममें से बहुतों को अज्ञातवास का व्रत लेना पड़ेगा। *रवीन्द्रनाथ ठाकुर*

जो विवेकी, विरक्त, शमी, दमी और भुभुक्षु हो, उसी में ब्रह्म-विचार की योग्यता मानी जाती है। *शंकराचार्य*

तुम्हारा सोता हुआ मन जाग जाये, इतनी योग्यता भी क्या तुममें अभी तक नहीं आयी। *कुरान*

जिसमें सेवा की योग्यता है, वह कभी बुरा नहीं होता। *बर्क*

हम ज्यों-ज्यों जीवन में प्रगति करते हैं, त्यों-त्यों हमें अपनी योग्यता की सीमा का ज्ञान होता जाता है। *फ्राउद*

जो अपने को योग्य समझते हैं, वे योग्य हैं। *वर्जिल*

यौवन विकारों को जीतने के लिए मिला है। उसे व्यर्थ ही न जाने दें। *महात्मा गांधी*

युवावस्था आवेशमय होती है। यदि वह क्रोध से आग हो जाती है, तो करुणा से पानी भी हो जाती है। *प्रेमचंद*

यौवन में दिन छोटे प्रतीत होते हैं, किन्तु वर्ष बड़े, जबकि वृद्धावस्था में वर्ष छोटे और दिन बड़े। *पेनिन*

जिसकी रग-रग में नया रक्त हो, उसका रास्ता कौन रोक सकता है? *मुसोलिनी*

लोभ के कारण रक्त के रिश्ते भी खूनी बन जाते हैं। *मैत्रेय रस्सी*

रस्सी का सांप बना देना, दुनिया का काम है। *सुकरात*

दीनता की परम मूर्ति धनहीनता नहीं, याचना है। कौपीनधारी होने पर भी शिवजी परमेश्वर ही माने जाते हैं। *भोज प्रबंध*

जैसे ही हम मांगते हैं हमारा हृदय सिकुड़ जाता है,और चेतना के द्वार तत्काल बंद हो जाते हैं। *ओशो*

यादें हमारे जीवन को हरा-भरा रखने हेतु, हमारे साथ प्रभु का पक्षपात है। यादें पंख हैं, जो उड़ने को पुरुषार्थ देती हैं। *माखनलाल चतुर्वेदी*

किसी राजा ने एक भक्त से पूछा कि-”मैं तुम्हें कभी याद आता हूं?” उत्तर मिला-“हां, जब मैं ईश्वर को भूल जाता हूं।” *शेख सादी*

दुःख की याद केवल खुशी को मधुर बना देती है। -पोलक * याद ही केवल ऐसा स्वर्ग है, जहां से हमको भगाया नहीं जा सकता। *रिचर*

Today Suvichar in hindi

युद्ध युद्ध हमसे हमारी इन्सानियत ही छीन लेता है। *डॉ० राधाकृष्णन*

धर्मयुद्ध में मरने के बाद भी बहुत कुछ बाकी रह जाता है। हार को पार करके मिलती है जीत और मृत्यु को पार करके मिलता है अमृत। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

विचारों के युद्ध में पुस्तकें ही अस्त्र हैं। *जार्ज बर्नार्ड शॉ*

युद्ध के समान अवश्यम्भावी संसार में और कुछ भी नहीं है। यदि युद्ध होता है, तो सदैव मनुष्यों की असफलताओं के परिणामस्वरूप ही होता है। *बोनर लॉ*

युद्ध ऐसा धन्धा है, जिसमें मनुष्य सम्मानपूर्वक नहीं रह सकता। *मैकियावली*

योग न तो बहुत खाने वालों का, न बिल्कुल खाने वालों का, न बहुत शयन करने के स्वभाव वाले का और न सदा जागने वाले का ही सिद्ध होता है। *श्रीमद्भगवद्गीता*

बुद्धि का नाश ही मोह है, वह धर्म और अर्थ दोनों को नष्ट करता है। इससे मनुष्य में नास्तिकता आती है और वह दुराचार में प्रवृत्त हो जाता है। *महाभारत*

मनुष्य मोहजाल में ऐसा तड़पता है, जैसे पानी से निकलकर जमीन पर पड़ी मछली तड़फड़ाती है। *गौतम बुद्ध*

मौन सर्वोत्तम भाषण है। अगर बोलना है तो कम से कम बोलो। एक शब्द से काम चले तो दो नहीं। *महात्मा गांधी*

विधाता ने मौन को ही अज्ञानता का ढक्कन बनाया है। यह मनुष्य के अधीन है और इसमें अन्य भी गुण हैं। यही ज्ञानियों की सभा में अज्ञानियों का आभूषण है। *भृतहरि*

मौन कभी-कभी वाणी से अधिक मुखर होता है। *महात्मा गांधी*

जो अपनी जिह्वा को वश में रखता है, वह जीवन पर नियन्त्रण रखता है, किन्तु जिसका जिह्वा पर काबू नहीं, वह नाश को प्राप्त होता है। *बाइबिल*

मौन में शब्दों की अपेक्षा अधिक वाकशक्ति होती है। *कार्लाइल*

एक ब्रह्म को छोड़ इस दुनिया में कुछ भी मौलिक नहीं। सब वर्णशंकर है। *चरक*

त्याग से यश मिलता है, धोखाधड़ी से नहीं। *प्रेमचंद*

यश के कपाट सदा खुले रहते हैं और उन पर भीड़ भी सदा बनी रहती है। कुछ लोग इसमें घुसपैठ करके जाते हैं और कुछ धकियाकर। *स्टेनले वाल्डविन*

धनहीन मनुष्य यदि अपने प्राणों को अग्नि में झोंक दे तो अच्छा है, किन्तु अपने मान को छोड़कर उसका कृपण मनुष्य से याचना करना अच्छा नहीं है। *हितोपदेश*

मृत्यु से नया जीवन मिलता है। जो व्यक्ति और राष्ट्र मरना नहीं जानते, वे जीना भी नहीं जानते। *पं० जवाहरलाल नेहरू*

यदि वहां मृत्यु का भय नहीं है, तो यहां से कहीं दूसरे स्थान पर भले ही चले जाओ, परन्तु यदि जीव की मृत्यु आवश्यक है, तो तुम कर्मभूमि से भागकर अपने यश को धूमिल क्यों करते हो? *वेणीसंहार*

मृत्यु से डरना क्यों? यह तो जीवन का सर्वोच्च साहसिक अभियान है। *चार्ल्स फ्राइमैन*

अपकीर्ति ही मृत्यु है। *शंकराचार्य*

मृत्यु भयानक इसलिए है कि हमने इससे घनिष्ठ परिचय करने का प्रयास ही नहीं किया। *मेरी वेल*

मृत्यु से सुन्दर और कोई दुर्घटना नहीं हो सकती। *वाल्ट ह्विटमैन*

मृत्यु से भयभीत होना कायरों का काम है, कारण वास्तविक जीवन तो मृत्यु ही है। *सुकरात*

भरे मेघ चुपचाप बरसते हैं, खाली मेघ गरजते हैं। *भृर्तहरि*

मोक्ष वह है जो सिखाता है कि इहलोक और परलोक दोनों का सुख गुलामी है। क्योंकि इस प्रकृति के नियमों के परे न कोई इहलोक है और न परलोक। *विवेकानंद*

मोक्ष में आत्मा, अनन्त आनन्दमयी रहती है। उस सुख की न कोई उपमा ही है और न कोई गणना ही। *महावीर स्वामी*

मोक्ष के चार द्वारपाल हैं-शम, विचार, सन्तोष और सत्संग। *योगवासिष्ठ*

ज्ञान द्वारा जिनके पाप धुल गए हैं, वे ईश्वर का ध्यान धरने वाले, तन्मय हुए, उसमें स्थिर रहने वाले और उसी को सर्वस्व मानने वाले लोग मोक्ष पाते हैं। *श्रीमद्भगवद्गीता*

मोह का स्थान मन है। *प्रेमचंद*

अतिशय मोह ही मनुष्य को कमजोर बना देता है। *चाणक्य*

जब तक संसार में कीट-पतंग आदि की मुक्ति न हो जायेगी, तब तक मैं अपनी मुक्ति की आकांक्षा नहीं करता। *गौतम बुद्ध*

Best osho Suvichar in Hindi

जो मुहर एक बार लग गयी, वह मिटेगी नहीं। *सुकरात*

मूर्खता बहुत-से कष्टों का कारण बनती है। *चाणक्य*

एक की मूर्खता से दूसरे का भाग्य बनता है। *बेकन*

पर्वतों और वनों में वनचरों के बीच विचरना श्रेष्ठ है, परन्तु मूर्यो के साथ स्वर्ग में भी रहना बुरा है। *भृर्तहरि*

लाभदायक वस्तु को फेंक देना और हानिकारक वस्तु को पकड़े रहना बस, यही मूर्खता है। *तिरुवल्लुवर*

अभागों को देखो, तुम उन्हें मूर्ख पाओगे। *यंग*

जो व्यक्ति मूरों के सम्मुख विद्वान् दिखलाई पड़ने का प्रयास करते हैं, वे विद्वानों के सम्मुख मूर्ख दिखलाई देंगे। *किवकट*

मूंछ रखने से कोई मर्द नहीं होता, काम से मर्द होता है। *सरोजनी नायडू*

सौ मूर्ख से एक विद्वान भला। *कालीदास*

मृत्यु थकावट के समान है, किन्तु सच्चा अन्त तो अनन्त की गोद में ही है। *रवीन्द्रनाथ टैगोर*

मृत्यु आतंकमयी नहीं है, बल्कि मृत्यु तो एक प्रसन्नतापूर्वक निद्रा है, जिसके पश्चात् जागरण का आगमन होता है। *महात्मा गांधी*

वेदान्त के अनुसार यह निद्रावस्था और जाग्रत अवस्था भी माया या भ्रम के सिवा और कुछ नहीं है। *स्वामी रामतीर्थ*

ईश्वर सब प्राणियों के हृदय में रहता है और अपनी माया से सब जीवों का इस प्रकार संचालन करता है, मानो वे यन्त्र पर संचार हों। *श्रीमद्भगवद्गीता*

माया ईश्वर की शक्ति है, फिर भी एक अनिर्वचनीय पदार्थ है। *शंकराचार्य*

व्यक्ति को ऐसे मित्र का परित्याग कर देना चाहिए जो उसकी पीठ पीछे उसके कार्य को हानि पहुंचाता है, बुरा-भला कहता है और सामने मीठी-मीठी बातें करता है। *हितोपदेश*

अच्छे आदमियों के लिए वांछित मित्र की प्राप्ति ही सबसे बड़ी उपलब्धि होती है। *मेघदूत*

न्याय नहीं, बल्कि त्याग और केवल त्याग ही मित्रता का नियम है। *महात्मा गांधी*

नीति कहती है कि मित्रता या शत्रुता बराबर वालों से ही करें। *वाल्मीकि*

सब प्राणियों को मित्र की दृष्टि से देखो। *यजुर्वेद*

उससे कभी मित्रता न कर, जो तुझसे बेहतर नहीं। *कन्फ्यूशियस*

परमेश्वर के ज्ञान बिना मुक्ति पाने का दूसरा कोई मार्ग नहीं है। *दयानन्द*

न तो कष्टों को निमन्त्रण दो और न उनसे भागो। जो आता है, उसे झेलो। किसी चीज से प्रभावित न होना ही मुक्ति है। *विवेकानंद*

ज्ञान के समग्र प्रकाश से, अज्ञान एवं मोह के विसर्जन से तथा राग एवं द्वेष के क्षय से आत्मा एकान्त सुख स्वरूप मुक्ति को प्राप्त करता है। *महावीर स्वामी*

अगर जीते-जी तुम्हारे बन्धन न टूटे, तो मरने पर मुक्ति की आशा क्या की जा सकती है? *कबीर*

मां के संस्कार से ही बच्चे का भाग्य है। *नेपोलियन*

मां के ममत्व की एक बूंद अमृत के समुद्र से ज्यादा मीठी है। *अनाम*

इस धरती पर मां ही ऐसी देवी है जिसका कोई नास्तिक नहीं। *ई० लेगोव*

भूमि मेरी माता है, मैं पृथ्वीपुत्र हूं। *अथर्ववेद*

माता और मातृभूमि का महत्व स्वर्ग से भी अधिक है। *वाल्मीकि*

मानवता, मुक्त होने की इच्छा और महान् पुरुषों का संग-ये तीनों भगवत्कृपा से प्राप्त नहीं होने वाली बड़ी ही दुर्लभ वस्तुएं हैं। *शंकराचार्य*

पक्षियों की भांति हवा में उड़ना और मछलियों की भांति पानी में तैरना सीखने के बाद अब हमें इंसानों की तरह धरती पर चलना सीखना है। *डॉ० राधाकृष्णन*

यह ज्यादा अक्लमंदी की बात है कि हम उस खुदा की बातें कम करें जिसे हम समझ नहीं सकते और इंसानों की बातें ज्यादा करें जिन्हें हम समझते हैं। *खलील जिब्रान*

कोई मनुष्य मानवता से बड़ा नहीं है। *थ्योडोर पार्कर*

मानवता का उचित अध्ययन ही मानवता है। ‌ *पोप*

बेइज्जत जीने से मर जाना अच्छा है। “प्रेमचंद*

जी से जहान अच्छा है, जब आबरू ही न रही तो जीने पर धिक्कार है। *महात्मा गांधी*

अवलम्बित और आश्रित होना जीवन में सबसे अधिक अपमानजनक होता है। *भगवतीचरण वर्मा*

माया और छाया दोनों एक समान हैं क्योंकि ये भागते हुओं के तो पीछे फिरती हैं और जो इनके पीछे पड़ता है, उनके आगे-आगे भागती है। *कबीर*

सच्ची महानता हृदय की पवित्रता में है, इसमें नहीं कि कोई तुम्हारे बारे में क्या कहता है। *समर्थ गुरु रामदास*

मनुष्य उतना ही महान् होगा, जितना वह अपनी आत्मा में सत्य, त्याग, दया, प्रेम और शक्ति का विकास करेगा। *स्वेट मार्डन*

महान पुरुष परोपकारी होते हैं। ऐसे पुण्य आत्माओं का भोग करने योग्य धन सदा दान देने के लिए ही होता है। *चाणक्य*

वस्तुतः महान् पुरुष वही है जो न तो किसी का शासन मानता है और न किसी पर शासन करता है। *खलील जिब्रान*

महान पुरुष अवसर की कमी की शिकायत कभी नहीं करते। *इमर्सन*

जैसे सूर्य आकाश में छिपकर नहीं विचर सकता, वैसे ही महान् पुरुष भी संसार में छिपकर नहीं रह सकते। *महाभारत*

महान पुरुषों की सम्पत्ति दुःखियों के दुःख दूर करने के काम आती है‌। *मेघदूत*

काट-छांट करने पर भी वृक्ष बराबर बढ़ता रहता है, बार-बार क्षीण होने पर भी चन्द्रमा की कलाएं बढ़ती रहती हैं-ऐसा सोचकर महान् पुरुष आपत्तियों से नहीं घबराता। *भृर्तहरि*

भीख मांगने से हांडी तो चढ़ जाती है, परन्तु मनुष्य का गौरव गिर जाता है। *शेख सादी*

मां बनते ही त्रिया कहां से कहां पहुंच जाती है। *दिनकर*

माता-पिता ही संतान के लिए प्रथम गुरु और सर्वथा पूज्य हैं। *महात्मा गांधी*

माता आप चाहे पुत्र को कितनी ही ताड़ना दे, यह गवारा नहीं करती कि कोई उसे कड़ी निगाह से भी देखे। *प्रेमचंद*

आसमान का गोलार्द्ध मेरा प्याला है, और चमकती हुई रोशनी मेरी शराब। *स्वामी रामतीर्थ*

यह कितनी बड़ी मूर्खता है कि अपना रुपया खर्च करके मात्र बेहोशी और बदनामी हाथ लगे। *संत तिरुवल्लुवर*

जो अमृतरूपी मदिरा का व्यापारी होता है, वह तुच्छ सांसारिक मद से क्यों प्रेम करे। *गुरु नानक*

मनुष्य के दुबले-पतले शरीर में मस्तिष्क ऐसी चीज है जो किसी बन्धन को नहीं मानती। *पं० जवाहरलाल नेहरू*

खाली मस्तिष्क शैतान का कारखाना बन जाता है। *महात्मा गांधी*

Best mahatma gsndhi Suvichar in Hindi

यदि तू मस्तिष्क को शान्त रख सकता है तो विश्व पर विजयी होगा। *गुरु नानक देव*

जीवन से यशस्वी जीवन और यशस्वी मृत्यु अधिक अच्छी है। *चन्द्रशेखर बैंकटरमन*

महत्त्वाकांक्षा लालसा का केवल निकृष्ट प्रतिबिम्ब है। *मैकडोनाल्ड*

महत्त्वाकांक्षा मानव हृदय की इतनी शक्तिशाली अभिलाषा है कि हम चाहे कितने ही उच्चपद पर पहुंच जाएं, हम संतुष्ट नहीं होते। *मैकियावली*

महत्त्वाकांक्षा वह पाप है कि जिससे देवदूत भी पतित हो गए। *शेक्सपियर*

महत्त्वाकांक्षा का मोती निष्ठुरता की सीपी में पलता है। *जयशंकर प्रसाद*

जो महान होते हैं, वह अपनी शरण में आये हुए नीच लोगों से वैसा ही अपनापन बनाये रहते हैं, जैसा सज्जनों के साथ। *कालिदास*

कुछ जन्म से ही महान् होते हैं, कुछ महानता प्राप्त करते हैं और कुछ लोगों पर महानता लाद दी जाती है। *शेक्सपियर*

 

100 Sabak sikhane wale status quotes thoughts सबक सिखने वाले स्टेटस कोट्स थॉट्स

aharshi Valmiki Biography in Hindi | उस एक घटना से डाकू रत्नाकर बने महर्षि